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चउवीसंपि जिणवर! जयंतु अप्पडिहय-सासण ॥ २ ॥
(वस्तु छंद) कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहि, पढम-संघयणि, उक्कोसय सत्तरि-सय जिणवराण विहरंत लब्भइ नव कोडिहि केवलिण, कोडि-सहस्सनव-साहू गम्मइ, संपइ जिणवर वीस, मुणि बिहुं कोडिहिं वर-नाण, समणह कोडि-सहस्स-दुअ, थुणिज्जइ निच्चविहाणि ॥ ३ ॥ जयउ सामिय। जयउ सामिय। रिसह सत्तुंजि, उज्जिंति पहु-नेमिजिण, जयउ वीर सच्चउरी-मंडण, भरुअच्छहिं मुणिसुब्बय, मुहरि-पास दुह-दुरिअ-खंडण, ॥४॥ अवर, विदेहि तित्थयरा, चिहुँ दिसि विदिसि जिं केवि तीआऽणा-गय-संपइय
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