________________
चिंतन करना चाहिए । ५० बोल बोलते समय किन-किन अंगो
का स्पर्श मुहपत्तिसे करना वे पचास बोल ये हैं,
मुँहपत्ति के ५० बोल
vm
१ सूत्र, अर्थ को, तत्त्व रूप से श्रद्धा करूं सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय
परिहरू (त्याग करू)
कामराग, स्नेहराग, दृष्टिराग परिहरू -
३
सुदेव, सुगुरु, सुधर्म को आदरूं
३ कुदेव, कुगुरु, कुधर्म परिहरूं
ज्ञान, दर्शन, चारित्र को आदरूं
ज्ञान- विराधना, दर्शन-विराधना चारित्र - विराधना परिहरूं मनगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति आदरूं मनदंड, वचन दंड, कायदंड परिहरूं (यहां तक २५ बोल हुए)
३
३
mm
३
m
-
३ हास्य, रति, अरति परिहरूं
३
३
३
३
--
Jain Education International
भय, शोक, जुगुप्सा परिहरू
कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या परिहरू रसगारव, रिद्धिगारव, शातागारव परिहरू मायाशल्य, नियाणशल्य, मिध्यात्वशल्य परिहरू - क्रोध, मान परिहरू माया, लोभ परिहरू
--
पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय की जयणा करूं वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय की रक्षा करूं (ये और २५ बोल हुए । कुल २५+२५ =५० बोल हुए )
५४
For Private & Personal Use Only
-
-
www.jainelibrary.org