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(ये २५ + पूर्व के २५ = ५० बोल मुहपत्ति-पडिलेहन में बोलने यानी चिंतन करने होते हैं।)
इस प्रकार चिंतन करके मुहपत्ति की पडिलेहना करने के पश्चात् खड़े होकर 'खमासमण' सूत्र बोलकर के वंदन करना, और आज्ञा मांगना कि 'इच्छाकारणे संदिसह भगवन् ! सामायिक संदिसाहूं?' [गुरु महाराज कहें 'संदिसावेह'] स्वयं कहना 'इच्छं' । पुन: खमासमण देकर आज्ञा मांगना 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक ठाउं ?' [तब गुरु महाराज कहे-'ठायेह'] स्वयं 'इच्छं' कह कर दोनों हाथ जोड़कर एक नवकार गिनना। गिनने के उपर गुरु से विनती करना 'इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी सामायिक दंडक उच्चरावो जी'। इस समय गुरु महाराज अथवा कोई बड़े व्यक्ति सामायिक में हों, तो वे 'करेमि भंते' सूत्र पढ़े। उसे विनय से हाथ जोड़कर शांति से सुनना । [यदि गुरु महाराज अथवा कोई ज्येष्ठजन वहां उपस्थित न हों, तो 'करेमि भंते' सूत्र स्वयं बोलना।]
तत्पश्चात् तत्काल खमासमण दे कर गुरु की आज्ञा मांगना 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बेसणे संदिसाहुं ?' [गुरु आज्ञा दें 'संदिसावेह'] स्वयं 'इच्छं' कहकर खमासमण देना, तथा पुन: आज्ञा मांगना ‘इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बेसणे ठाउं?' (गुरु कहेंगे-ठाएह) 'इच्छं' कहकर खमासमण देकर आज्ञा मांगना 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय संदिसाहूं?' [गुरु कहते हैं- 'संदिसावेह'] स्वयं 'इच्छं' कहना। खमासमण देकर फिर आज्ञा मांगना 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय करूं?' [गुरु कहें 'करेह'] स्वयं 'इच्छं' कहकर दो हाथ जोड़कर तीन
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