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आशीर्वाद मुद्रा से) रख करके एक नवकार तथा पंचिदिय सूत्र बोलकर गुरु-स्थापना करनी चाहिए।
तत्पश्चात् ‘खमासमण' सूत्र बोल कर भूमि का स्पर्श करते हुए गुरुजी को पंचांग से प्रणिपात-वंदना करनी चाहिए । [बोलते समय इस सूत्र के तीन भाग किए जाएँ
(१) इच्छामि खमासमणो वंदिउं, (२) जावणिज्जाए निसीहियाए, (३) मत्थएण वंदामि।
वंदन के अनन्तर अनुक्रम से 'इरियावहियं' 'तस्स उत्तरी' और 'अनत्थ' सूत्र कहने चाहिए। तत्पश्चात् एक 'लोगस्स' का 'चंदेसुनिम्मलयरा' पद तक मन में पाठ (स्मरण) करना चाहिए। पाठ कायोत्सर्ग में रहते हुए मौनरूप से यानी इस रीति से किया जाय कि ओष्ठ न फड़कें। लोगस्स का पाठ न आता हो तो चार नवकार का पाठ करना।
काउस्सग्ग पूरा होने पर 'नमो अरिहंताणं' कह कर काउस्सग्ग पारा जाए, बाद में संपूर्ण लोगस्ससूत्र मुँह से प्रकट बोलना चाहिए । तत्पश्चात् खमासमण देकर बाद में 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! मुहपत्ति पडिलेहुँ' बोलकर मुहपत्ति पडेलेहने के लिए गुरुमहाराज की आज्ञा मांगना (सद्गुरु आज्ञा देते है-'पडिलेहेह'।) गुरुमहाराज न हों तो समझ लेना कि गुरु-आदेश मिल गया है। तदनन्तर ‘इच्छं' कहकर गोदोहासन की अवस्था में बैठकर दो गोडे के बीच रखे दो हाथ से मुहपति की पडिलेहना करना। यह पडिलेहना करते समय कुल मिलाकर ५० बोलका
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