________________
नियम संजुत्तो छिन्नइ असुहं कम्प:
सामाइय
जत्तिआ वारा सामाइयम्मि
उ कए
समणो इव सावओ
हव
जम्हा एएण कारणं
बहुसो
सामाइयं
कुज्जा
-
-
Jain Education International
wgad
-
-
नियम- युक्त
-
( तब तक) अशुभ कर्म कटता
रहता है--दूर होता चलता है
सामायिक
जितनी बार सामायिक
तो करने से
साधु के समान
श्रावक
• होता है
जिस कारण से
इस कारण से
अनेकबार
सामायिक
करना चाहिए।
भावार्थ
जब तक और जितनी बार मन में पापप्रवृत्ति के त्याग का नियम वाला होता है, तब तक और उतनी बार सामायिक करने वाले जीव के अशुभ कर्मों का नाश होता रहता है
सामायिक करनेवाला सामायिक की अवधि में श्रावक होने पर भी साधुतुल्य होता है । अतः सामायिक बारंबार करना चाहिए।
५०
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org