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________________ मैंने यह सामायिक विधिपूर्वक लिया है और उसे विधिपूर्वक पूर्ण किया है। इस विधि को करते हुए प्रमाद के कारण कोई दोष लगा हो तो उसके संबन्ध में मेरा मिच्छामि दुक्कडं है, तदविषयक मेरा दुष्कृत मिथ्या हो । दुष्कृत की निन्दा - संताप करता हूं । सामायिक के समय में दस मन के, दस वचन के, और बारह काया के, - इस प्रकार कुल ३२ दोषों में से किसी भी दोष का सेवन भूल से भी हुआ हो तो उस विषय का 'मिच्छामिदुक्कडं' है (मेरा दोष मिथ्या हो ।) सूत्र परिचय - सूत्र का प्रारंभ 'सामाइयवय- जुत्तो' से होता है । अत: इसका नाम 'सामाइयवय जुत्तो' है। इस सूत्र से सामायिक पारा जाता है। अतः इसका दूसरा नाम 'सामाइक पारण' सूत्र है। सामायिक पारना अर्थात् सामायिक को विधिपूर्वक पूर्ण करना । इस सूत्र की पहली गाथा में सामायिक के नियम की महिभा प्रदर्शित की गई है। जब तक मन नियम-युक्त यानी नियम में दत्तचित्त है, तब तक पापकर्मों का छेद होता रहता है। Jain Education International सूत्र की दूसरी गाथा में सामायिक के प्रभाव का वर्णन किया गया है । सामायिक वाला श्रावक साधु के समान बनता है। कारण यह है कि साधु के लिए आजीवन सामायिक में जैसे पापयोग का प्रतिज्ञाबद्ध त्याग होता है, वैसा ही श्रावक के लिए दो घड़ी के सामायिक में होता है। इस महिमा और प्रभाव के कारण इस सूत्र में उपदेश दिया जाता है कि सामायिक बहुबार करना चाहिये । ५१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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