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से होने के कारण इसका नाम 'करेमि भंते' सूत्र भी है। सामायिक एक व्रत है, अत: जिस क्रिया में समभाव की आय (कमाई) हो ऐसी क्रिया सामायिक कहलाती है। यह कहा जा सकता है कि सामायिक का अर्थ है समता में रहने की शिक्षा देनेवाला व्यापार । सब जीवों के प्रति और समस्त इष्ट-अनिष्ट पदार्थों के प्रति समभाव का पालन करना है उसकी शिक्षा (अभ्यास) चले,- इस उद्देश्य से (१) सभी पाप-प्रवृत्तियों को प्रतिज्ञापूर्वक बंद करना, (२) इद्रियों के विकारों पर संयम रखना, (३) शुभ भाव में रमण करना, व (४) आर्त-रौद्र नामक अशुभ ध्यान का त्याग करना चाहिए। इस हेतु शास्त्र - स्वाध्याय करना चाहिए। __इन चारों की सिद्धि के लिए सामायिक किया जाता है। संक्षेप में, रागद्वेष को जीतकर समभाव की साधना करनी यह सामायिक है।
इस सूत्र में सपाप-व्यापार (सावध योग) का त्याग है। यहां ये दो प्रकार से किया जाता है। मन से न करना न कराना, वचन से न करना न कराना, शरीर से न करना, न कराना।
सामायिक की विधि में पहले जाने आने में हुई जीव-विराधना के विषय में इरियावहियं की क्रिया की जाती है। बाद में बाह्य तथा आभ्यंतर से शुद्ध हो कर सामायिक की प्रतिज्ञा (पच्चक्खाण) व स्वाध्याय-आदेश की याचना की जाती है, बाद में ४८ मिनिट तक सामायिक में स्थिरता की जाती है। ऐसा पच्चक्खाण
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