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________________ नाश करने के लिए करना। यहाँ ध्यान रहे कि 'उत्तरीकरणेणं' आदि चार पद हेतुसंपदा के पद हैं, एवं ‘पावाणं कम्माणं निग्घायणट्ठाए', ये निमित्तसंपदा के पद हैं। यहाँ हेतु साधन, निमित्त प्रयोजन । ये साधनादि किसके? तो कि कायोत्सर्ग के। ___'अरिहंत चेइयाणं' सूत्र में इससे उल्टा है, अर्थात् पहले 'वंदणवत्तियाए' आदि छ:पदों की निमित्तसंपदा बताई, बाद में ५ पदों की हेतुसंपदा 'सद्धाए मेहाए.. आदि बताई। सूत्र परिचय शरीर के किसी भाग में गहराई तक काँटा, काँच का टुकड़ा, लोहे की कील आदि चुभ गये हो, तो वैद्य (१) पूरी तरह उसका पता लगाता है। तत्पश्चात् (२) शरीर के जिस भाग में चुभा हो उसके धाव पर मलहम आदि औषधी लगाता है। इससे सूजन का बढ़ना रुक जाता है, और अन्दर रहा हुआ काँटा आदि शीघ्र बाहर आ जाता है। इसके साथ ही (३) रोगी को उचित पाचक चूर्ण दिया जाता है। जिससे पेट साफ हो जाए और भीतर का रक्त उस काँटे या टुकडे के कारण विकृत न हो। तथा (४) अंत में जब काँटा या कण ऊपर आए उस समय उसे सरलता से खींच लिया जाता है। इस प्रकार काँटा निकालने के चार क्रमिक विधान हैं-निदान, प्रतिकार, सफाई और नि:शल्यता। ___ इसी प्रकार पूर्व के 'इरियावहियं' सूत्र में कथित विराधना आदि से आत्मा में गहराई तक प्रविष्ट हुए पाप को चार उपायों से नष्टकर आत्मा को शुद्ध बनाने की विधि इस 'तस्सउत्तरी' सूत्र में निर्दिष्ट की गई। - ३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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