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________________ ६. 'तस्स उत्तरी करणेणं' सूत्र तस्स उत्तरीकरणेणं, पायच्छित्तकरणेणं, विसोहीकरणेणं, विसल्लीकरणेणं, पावाणं कम्माणं निग्यायणढाए, ठामि काउस्सग्गं ॥ १ ॥ | शब्दार्थ तस्स - उसके (जिस विराधना का प्रतिक्रमण किया उसके) उत्तरीकरणेणं - स्मृतिकरण आलोचनादि उत्तरीकरण करने द्वारा पायच्छित्तकरणेणं - प्रायश्चित्त करने द्वारा विसोहीकरणेणं - विशुद्धि करने द्वारा विसल्ली करणेणं - शल्य दूर करने द्वारा पावाणं कम्माणं - पापकर्मों का निग्घायणट्ठाए - नाश करने के लिए ठामि काउस्सग्गं - मैं कायोत्सर्ग करता हूँ। भावार्थ पूर्वोक्त जीव-विराधना अथवा साध्वाचार-भंग के फलस्वरूप उपार्जित किये पापकों के संपूर्ण क्षय के लिए. उसके स्मरणआलोचना से, प्रायश्चित्त से, विशेष शुद्धि से, और नि:शल्यता से साध्य कायोत्सर्ग में मैं स्थिर होता हूँ। स्मरण में विराधना को स्मृतिपट व आलोचना में लाकर पश्चात्ताप आदि पूर्वक कायोत्सर्ग में रहना है वह पापकमों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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