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'हे गौतम! गुरुवंदन द्वारा जीव नीचगोत्रकर्म का क्षय करता है. उच्चगोत्रकर्म को बाँधता है तथा अप्रतिहत (जिसका उल्लंघन संभव नहीं ऐसे आज्ञा के) फल से युक्त सौभाग्य नामकर्म का उपार्जन भी करता है।" [ धर्मसंग्रह]
'गुरु' उसे कहते हैं कि जो (१) शुद्ध धर्म का ज्ञाता हो, (२) उसका आचरण करनेवाला हो, (३) सदा उसी में तल्लीन हो, और (४) जीवों को उसी शुद्ध आचार का उपदेश देनेवाला हो; एवं
जो जीवनपर्यंत सर्वथा अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह के महाव्रतों का पालन करता हो;
उसे ही 'गुरु' कहते हैं । इस प्रकार का पञ्चमहाव्रतधारी गुरु धर्मज्ञ, धर्मकर्ता, धर्मपरायण तथा परमगुरु परमात्मा द्वारा प्ररूपित तत्त्व और मोक्षमार्ग रूप धर्म का उपदेष्टा होता है।
हमारे अज्ञान के हर्ता, हमारे धर्मानुष्ठान के प्रेरक, हमारी आत्मा की उन्नति के लिए दिशानिर्देशक उपकारी गुरु भगवान को सविनय तथा शास्त्रोक्त विधि से प्रातः व सायं वंदना करनी चाहिए ।
परमगुरु परमात्मा द्वारा कथित ऐसे गुरु को प्रणाम करने से, उनका विनय करने से, उनकी सेवा-भक्ति करने से, हम परमात्मा के निकट पहुँच जाते हैं। साधना से प्रेरणा प्राप्त होती है तथा गुरुजी का निर्मल आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस साधना तथा आशीर्वाद से मन शुद्ध और प्रसन्न होता है। इसके अतिरिक्त गुरु के आशीर्वाद से हमारा मनोबल भी दृढ़ बनता है तथा प्रत्येक शुभ काम में सफलता प्राप्त होती है I
परमोपकारी गुरु भगवंतो को मन, वचन, काया से वारंवार नमस्कार हो ।
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