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विधिपूर्वक गुरुवंदना करने के उपरांत गुरु-भगवंत से यथाशक्ति नवकारशी आदि तप का पच्चक्खाण लेना चाहिए। वे जब ‘पच्चक्खाइ' बोले, तब उसे करबद्ध हो मन में धारना और 'पच्चक्खामि' कहकर स्वीकृत करना चाहिए।
गुरुवंदन गुरुवंदन तीन प्रकार से होता है : १. फिट्टा वंदन, २. थोभ वंदन, तथा ३. द्वादशावर्तवंदन । प्रथम फिट्टावंदन मस्तकादि झुकाने से, द्वितीय थोभवंदन पंचाङ्ग प्रणिपात (खमासमणा) देने से, तीसरा द्वादशावर्त वंदन 'अहोकायं काय संफासं' वाले सूत्र से होता है [गुरुवंदन भाष्य ___आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर तथा रत्नाधिक इन पांचों को कर्म की निर्जरा के उद्देश्य से वंदन करना चाहिए। [प्रवचन सारोद्धार]
__गुरुवंदन की महिमा पूज्य वंदनीय श्री गौतमस्वामी ने भगवान् महावीर देव से विनयपूर्वक पूछा-'हे भगवन् ! गुरुवंदन करने से जीव को किस फल की प्राप्ति होती है?'
तरणतारण भगवान् ने फरमाया-'हे गौतम ! ज्ञानावरणीय आदि कर्म गाढ बंधन से बांधे हुए हो तो वे शिथिल बंधनवाले, दीर्घ स्थितिवाले हों तो अल्प अवधिवाले, तीव रसवाले अशुभ कर्म मंद रसवाले तथा बहुत प्रदेशोंवाले हो तो अल्प प्रदेशोंवाले हो जाते हैं। फलत: जीव अनादि अनन्त संसार रूपी अटवी में दीर्घ समय तक परिभ्रमण नहीं करता।' अंत में मोक्ष पाता है।
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