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भत्ते
संलावे
जं किंचि
जो कोई अपत्तिअं
आप को अप्रीतिकर परप्पत्तियं
आप को अत्यंत अप्रीतिकर
आहार विषयक पाणे
पानी विषयक विणये
विनय में वेयावच्चे
सेवा में आलावे एकबार की बातचीत में
अनेक बार की बात में उच्चासणे आपसे ऊँचे आसन पर बैठने में) समासणे - आप के समान आसन पर बैठने में) अंतर भासाए - आपके और के साथ बोलते हुए बीच
में ही बोलने में उवरिभासाए - आपके बोलने के बाद अधिक बोलने में मज्झ - मेरा विणय परिहीणं - विनय-रहित (विनय का भंग करके) सुहुमं वा बायरं वा - सूक्ष्म अथवा स्थूल दोष-अपराध
(हुआ) तुम्भे जाणह - आप जानते हैं अहं न जाणामि - मैं न जानता हूँ तस्स मिच्छामि दुक्कडं - वह मेरा अपराध
दुष्कृत मिथ्या हो।
भावार्थ हे गुरु भगवन् ! दिन और रात्रि में मेरे द्वारा हुए अपराधों
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