________________
जं किंचि अपत्तिअं परप्पत्तियं, भत्ते, पाणे, विणए, वेयावच्चे,
आलावे, संलावे, उच्चासणे, समासणे, अन्तरभासाए, उवरिभासाए, जं किंचि मज्झ विणय-परिहीणं
सुमं वा बायरं वा,
तुब्भे जाणह,
अहं न जाणामि,
तस्स मिच्छामि दुक्कडं.
इच्छाकारेण
संदिसह
भगवन् अब्भुट्ठिओहं अब्भिंतर देवसिअं
( अब्भिंतर राइअं
खामेउं
इच्छं
खामेमि
Jain Education International
शब्दार्थ
आपकी इच्छा से आदेश दो हे भगवंत ।
मैं उपस्थित हुआ हूं
--
--
दिन विषयक अपराध की
रात के अपराध की
क्षमा याचना के लिये; स्वीकार करता हूं;
क्षमा माँगता हूं
१९
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org