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है कि क्या आपकी तपस्या निर्विघ चल रही है? (३) तीसरा है कि क्या आपके शरीर में किसी प्रकार की पीड़ा या दुःख तो नहीं है न? (४) चौथा प्रश्न है कि क्या आपकी संयमसाधना सुखपूर्वक चल रही है? (५) पाँचवा है कि क्या आपको सर्व प्रकार से या मन से सुखशांति (शाता) है?
इन प्रश्नों को पूछने का कारण यह है कि दिन में अथवा रात्रि में कोई बाधा या विघ्न उपस्थित हुआ हो, तप में किसी प्रकार की रुकावट हो, शरीर में रोगादि की वेदना हो, विरोधियों की ओर से संयमसाधना में संकट उपस्थित किया गया हो, तो श्रावक इनके निराकरण का प्रयत्न करे, तथा साधुसेवा का महान लाभ ले। [अपने लिए शिष्य अथवा भक्त की इस सुखचिंता को जानकर गुरुदेव सुखशाता के प्रश्न का उत्तर देते हैं, 'देव-गुरु पसाय' अर्थात् देवाधिदेव और गुरु की कृपा-प्रभाव से सुखशांति है।
गुरुदेव को किसी प्रकार की अशाता अथवा अशांति नहीं है, यह जानकर भक्त गुरु को विनंती करता है कि हे गुरुदेव ! आप हमारे यहाँ पधारे तथा आहार-पानी आदि ग्रहणकर मुझे धर्म का लाभ प्रदान करने की कृपा करे ।
इसके उत्तर में गुरु महाराज फरमाते हैं'वर्तमान जोग' अर्थात् जैसा अवसर होगा।
अब्भुट्टिओ [क्षामणक] सूत्र इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! अब्भडिओहं अभिंतर देवसि (राइ) खामेउं? इच्छं, खामेमि देवसि (राइ) ।
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