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________________ की क्षमा याचना करने के लिए मैं उपस्थित हुआ हूँ । अतः आप अपनी इच्छा से आज्ञा प्रदान करे ताकि मैं अपने अपराधों को खमाऊं । उनकी क्षमा याचना करूं ( गुरु महाराज कहते हैं- खमाइए 1) गुरु की आज्ञा प्राप्त होने पर शिष्य भक्त कहता है दिवस अथवा रात्रि की अवधि में मेरे द्वारा जो कोई आपको अप्रीतिकर ( आपके लिए अरुचिकर) विशेषरूपेण अप्रीतिकर कार्य हुआ हो, इसी प्रकार भोजन के विषय में, पानी के विषय में, विनय के पालन में, सेवा करने के विषय में, एक या अनेक बार बातचीत करते हुए, आपकी अपेक्षा ऊंचे आसन पर अथवा आपके समान आसन पर बैठने में, आपके दूसरे व्यक्ति से वार्तालाप करने के समय बीच में बोलने में, बाद में बोलने में, विनय का उल्लंघन करते हुए मुझसे छोटा या बड़ा अपराध हुआ हो और इस प्रकार विनयभाव की उपेक्षाकर अपराध करने का मुझे ज्ञात न हो परन्तु आप उसे जानते हों, मैं अपने ऐसे अपराधों के लिए क्षमार्थी हूं। मैं चाहता हूं कि मेरे ऐसे अपराध और अविनय के दुष्कृत मिथ्या हो । सूत्र -- परिचय 1 शिष्य अथवा भक्त स्वत: प्रेरणा से गुरु के समक्ष सादर हाथ जोड़कर खड़ा रहता है, अतः इस सूत्र को 'अब्भुट्टिओमि' सूत्र भी कहते हैं । इसके द्वारा शिष्य किंवा भक्त अपने अपराधों की क्षमा मांगता है, अत: इसे 'गुरू क्षमापना' सूत्र भी कहा जाता है | ध्यान में रहे क्षमापना = क्षमा मांगना । इस सूत्र का प्राण शब्द है - 'खामेउ' अर्थात् मैं खमाऊं ? Jain Education International २१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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