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आदि चर्तुविध संघ की स्थापना करते हैं ।)
सिद्ध अर्थात् सब कर्मों का क्षय करके मोक्ष को प्राप्त करने वाली आत्माएँ (संसार के जन्ममरण के चक्र से मुक्त) । आचार्य अर्थात् पंचाचार का स्वयं पालन करते हुए उनका प्रचार करने वाले ।
उपाध्याय अर्थात् जिनागम का अध्ययन करानेवाले । साधु अर्थात् ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप मोक्षमार्ग की ही साधना करने वाले ।
पंच परमेष्ठी के इन नमस्कारों में उनके गुणों-सुकृतों का संपूर्ण अनुमोदन होता है फलत: हिंसादि पापों (दुष्कृतों) की घृणा भी होती है । इन नमस्कार का फल क्या होता है ? समस्त रागादि पापों का नाश । इसका प्रभाव यानी इसकी महिमा क्या ? समस्त मंगलों में श्रेष्ठ मंगल । अतः प्रत्येक कार्य के प्रारंभ में नमस्कार मन्त्र का स्मरण करना चाहिए। (कम से कम प्रथम पद का )
पंचिदिय - संवरणो,
तह नवविह - बंभचेरगुत्ति - धरो कसाय - मुक्को, इअ अठ्ठारस - गुणेहिं संजुत्तो
चउव्विह
पंच
जुत्तो,
महव्वय पंचविहायार पालण समिओ ति गुत्तो, छत्तीस - गुणो गुरु मज्झ
पंच
११
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२. पंचिदिय (गुरुस्थापना) सूत्र
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समत्थो,
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