________________
ये पांच नमस्कार सभी पापों का नाश करने वाले होते हैं। तथा समस्त मंगलों में श्रेष्ठ मंगल है।
सूत्र परिचय
यह सूत्र महाप्रभावशाली है। क्योंकि,
(१) प्रत्येक जैनशास्त्र का पठन करते समय प्रारंभ में इसे याद करना होता है
1
(२) समस्त मंत्रों में यह उच्चतम मंत्र होने के कारण यह महामंत्र है ।
(३) इसका एक बार भी जाप करने से ५०० सागरोपम की पापकर्मों की काल स्थिति टूट जाती है ।
(४) परलोकगमन के समय जिसके हृदय में मैत्रीभाव और नमस्कार महामंत्र होते हैं, उसे सद्गति अवश्य प्राप्त होती है। इत्यादि ।
इस सूत्र में 'नमो' पद से पंचपरमेष्ठी को नमस्कार किया गया है । परमेष्ठी को नमस्कार अर्थात् नमन करते समय हृदय में नम्रता धारण करके परमेष्ठी को भक्तिपूर्वक प्रतिष्ठित करना चाहिए। परमेष्ठी अर्थात् परम उच्च स्थान पर विराजमान । ये पांचो परमेष्ठी सब पापों का प्रतिज्ञापूर्वक त्याग करनेवाले होते हैं। उनके नाम अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु । इन प्रत्येक को भावपूर्वक किया गया नमस्कार सब पापों का अत्यन्त नाश करता है। यह श्रेष्ठ मंगल है।
इनमें 'अरिहंत' का अर्थ है एवं सुरा - सुरेन्द्रकृत पूजा के
आठ महाप्रतिहार्य की शोभा योग्य । (ऐसे वीतराग सर्वंज्ञ श्री तीर्थंकर भगवान होते हैं, जो जैन धर्मशासन और गणधर
Jain Education International
१०
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org