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संयम लइ प्रभुविचरवा लाग्या, संयमे भींज गयो एक रंग में..पार्श्व ४ संमेतशिखर प्रभु मोक्षे सिधाव्या, प्रभुजी (पार्श्वजी) को महिमा तीन भुवन में
पार्श्व ५ 'उदयरतन की एही अरज है, दिलअटको तोरा चरणकमल में पार्श्व ६ 'भीडभंजन पार्श्वप्रभु समरो, अरिहंत अनंतनुं ध्यान धरो; जिनआगम अमृत पान करो, शालनदेवी सवि विघ्न हरो.
श्री श्रेयांस जिन स्तवन (राग : अनंत वीरज अरिहंत) श्रेयांस जिणंद घनाघन गहगह्यो, वृक्ष अशोकनी छाया, सुभर छाई रह्यो, भामण्डलनी झलक झबूके विजली,
उन्नत गढ तिग इन्द्रधनुष शोभा मिली देव दुंदुभिनो नाद, गुहिर गाजे घणो, भाविक जन मन नाटक, मोर क्रीडांगणुं, चामरकेरी हार चलंती बगतति,
देशना सरस सुधारस वरसे जिनपति ॥ २ ॥ समकिती चातकवृंद तृप्ति पामे सिंहा, । सकल कषाय दावानल शांति हुइ तिहा; जनचित्तवृत्ति सुभूमि वेहांली थई रही,
तेणें रोमांच अंकुरवती काया लही ॥ ३ ॥
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