________________
श्रमण कृषिवल सज्ज हुए तब उज्जमी, गुणवंतजन मन क्षेत्र संभारे संयमी, करतां बीजाधान सुधान्य निपावता,
तेणे जगतना लोक रहे सवि जीवता ॥ ४ ॥
गणधर गिरितट संगी थई सूत्र गूंथना, तेह नदी प्रवाहे हुई बहु पावना (वाचना); एहि ज मोटो आधार विषम काले लह्यो,
मानविजय उवज्झाय कहे में सद्दह्यो ॥ ५ ॥
श्री महावीर प्रभु के स्तवन (१)
वीर वीरनी धून जगावो, प्रभु वीरनां दरशन पावो प्रभु वीर ने शिर झुकावो, वीर वीरनी धून जगावो ॥ १ ॥
भवसागरमां वीर सुकानी, नैया पार तरावो, पापनी भेखड़ दूर हटावी, शिव मंदिर बतलावेो वीर ॥ २ ॥
देह सदनमा आत्मा जगाडी, ज्ञान ज्योति प्रगटावो, भाव भरेला अमीरस सिंची, आ भव पार उतारो... वीर ॥ ३ ॥
Jain Education International
१. पतवार, २. कगार,
१३८
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org