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वर्ष के उपवास का फल मिलता है। ___ मंदिरजी की प्रदक्षिणा देते समय एक सौ वर्ष के उपवास का, व श्री जिनभगवान् की पूजा करने से एक हजार वर्ष के उपवास का, तथा उनकी स्तुति से अनन्त पुण्य उपलब्ध होता है। (पद्मचरित्र) 'गगन तणुं जिम नहीं मानम्, 'तिम अनंत गुण जिनगुण गानम्... अर्हत जिनंदा प्रभु मेरे...
(आत्मारामजी कृत सत्तर भेदी पूजा)
__ मूर्ति कैसे भगवान् ? जिसमें मनुष्य निवास करता है उसे मकान कहते हैं । जहाँ भगवान की प्रतिमा विराजमान की जाती है, उस मुकाम को मंदिर कहते हैं। चैत्य, देरासर, मंदिर ये सब पर्यायवाची शब्द (other words) हैं । जहाँ जिनेश्वर भगवान की मूर्ति यानी जिनप्रतिमा स्थापित की जाती है, उसे जिनमंदिर या जैन देरासर कहते हैं। शिल्पी ने तैयार की जिनप्रतिमा पर, प्रभु के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण इन पाँच कल्याणक प्रसंगों के मंत्राक्षरादि से संस्करण उत्सव आदि द्वारा, अंजनशलाकाविधि की जाती है। तब यह प्रतिमा जिनेश्वररूप बन जाती है। ऐसी संस्कारित मूर्ति ही पूजनीय, वंदनीय है।
जिनमंदिर यह जिनेश्वर-वीतराग तीर्थंकर परमात्मा की पूजा और उपासना का, व सेवा और भक्ति का पवित्र धाम है। पवित्र मंत्रोच्चारपूर्वक अंजनशलाका-विधि द्वारा जिस जिनमूर्ति में प्राणप्रतिष्ठा की गई हो, उसे पवित्र और आनंददायक
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