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जिनपूजा
गंध (वास - चूर्ण आदि), धूप, दीपक, अक्षत व फल- नैवेद्य, - इन पाँच द्रव्यों से, हिंसादि पाँच पापों को चूर्ण करनेवाली प्रभात की 'पंचप्रकारी' पूजा होती है । बाद मध्याह्न में जल, गंध (चंदन- केशर), पुष्प, धूप, दीपक, अक्षत, नैवेद्य, फल, -- इन आठ द्रव्यों से की गई, अष्टकर्म का दलन करनेवाली, अष्टप्रकारी पूजा होती है। स्नात्र, अर्चन, वस्त्र तथा आभूषण आदि से, फल- नैवेद्य दीपक आदि से तथा नाटक, गीत, आरती आदि द्वारा सर्वप्रकारेण 'सर्वप्रकारी पूजा होती है। (चैत्यवंदन भाष्य )
जिन-पूजा यह मुख्यतया, द्रव्य- पूजा और भाव-पूजा, - इस रीति से दो प्रकार की होती है। उनमें पुष्पादि पुद्गल - द्रव्यों से की जानेवाली पूजा द्रव्यपूजा है, और जिनेश्वरदेव की आज्ञा का पालन करना यह भावपूजा है 1 (संबोध प्रकरण)
जिन-दर्शन-पूजा का फल
श्री जिनमंदिर-दर्शन जाने की इच्छा होने पर एक उपवास का फल मिलता है, वहाँ जाने की तय्यारी करने से दो उपवास का, जाने के लिए पैर उठाने पर तीन उपवास का फल मिलता है। श्री जिनमंदिर की ओर प्रस्थान करने से चार उपवास का, थोड़ा चल लेने पर पाँच का, मार्ग में पन्द्रह का और मंदिरजी के दर्शन होने पर एक मास के उपवास का फल मिलता है ।
मंदिरजी में प्रभु के निकट पहुँचने पर छमासी तप का तथा मंदिरजी के गंभारे के द्वार पर नमस्कार करने से एक
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