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________________ वातावरण में पूज्य श्रमण भगवंतों की निश्रा में जिनमंदिर में विधि पूर्वक आसन पर प्रतिष्ठित की जाती है। इससे जिनमंदिरों के कोने कोने में, उनके समस्त वातावरण में ऐसा दिव्य प्रभाव पड़ता है कि उससे हृदय के भाव शुद्ध होते हैं और अन्तर में शुभ भावना जागरित होती है। ऐसे जिनमंदिर में विराजमान जिनप्रतिमा को केवल प्रतिमा अथवा मूर्ति नहीं समझना चाहिए। उसे साक्षात् जिनेश्वर भगवान् समझकर आंतरिक उल्लास से उसका चरणस्पर्श करना चाहिए। हमें उसकी पूजा-भक्ति उत्तम द्रव्यों से करनी है, उसके गुणों की भावभीनी स्तुति करनी है । इस प्रकार वीतराग भगवान् की भावपूर्ण हृदय से भक्ति-उपासना करते करते हमारे विषयभोग के पाप, रागद्वेषादि दोष, और हिंसा-झूठ आदि दृष्कृत्य घटते जाते है, आत्मतेज बढ़ता जाता है, और अंत में सर्वपाप-त्याग का संयम-जीवन प्राप्त होता है। ____ भक्ति में असीम शक्ति है। भगवान् की भक्ति करने से जीवन में आमूल परिवर्तन होता है। परमात्मा की पूजा करते करते कालक्रमेण मनुष्य परमात्मा बन जाता है। भक्ति उसे कहते हैं जिससे अन्त में भगवान् के तुल्य स्वरूप उपलब्ध हो। पूजा वह है जिससे अन्त में आत्मा पूज्य परमात्मा का स्वरूप प्राप्त करे। अंजन की हुई जिनप्रतिमा की पूजा और भक्ति से हमें स्वयं जिनेश्वर बनना है। संक्षेप में जिनप्रतिमा जिनेश्वर बनने के लिए उत्तम आलंबन है। जिनपूजा की सामान्य विधि १. स्नान करके पूजा के निमित्त अलग रखे हुए स्वच्छ १०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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