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________________ के मोह-मिथ्यात्व के अन्धकार को दूर करने वाली प्रभु की कैसी अजोड धर्म-देशना । अनेक जीवों को राग-द्वेष के बन्धन में से मुक्त किया और मुक्त बनने की तत्त्वमार्ग की विरासत देते गये। (३) रुपातीत अवस्था :- 'आप कर्म पूर्ण होने पर कर्मरहित, देहरहित शुद्ध अवस्था = मोक्ष स्वरुप निश्चल अवस्था आपने पायी । प्रभु ! आपकी कैसी अनुपम रुपातीत देह व कर्म बिना की अरुपी अवस्था । कोई पीडा-गुलामी, भूख, प्यास, रोग-शोक, जन्म-मरण आदि विषमताकारी कोई द्वंद्व आपको भोगने शेष ही नहीं रहे हैं। ___ आप तो सर्वथा स्वाधीन, सर्वंतंत्र स्वतंत्र, अनन्तज्ञान - अनन्त सुखमय स्वभाव रमणता के स्वामी बने हैं । आदि अनंत भाग में अक्षय स्थिति पायी । प्रभु ! मैं भी सम्यक् . .. ................................ Jain Education International Private Personal Use Onlyww.jainelibrary.org
SR No.003231
Book TitleAshtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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