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चारित्र के पुरुषार्थ से मिथ्यात्व अविरति - कषायों को जीतकर अयोगी बनुं, यही एक तमन्ना है ।'
इस प्रकार तीन अवस्थाओं के चिन्तन से आत्मा के परिणाम सुन्दर बनते हैं, जिनसे सम्यग् दर्शनादि गुण सुलभ बनते हैं ।
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