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________________ इस पूजा के बाद की जाने वाली केशर पूजा में प्रभु के नौ अंगो पर तिलक किया जाता है, जो नवांगी तिलक कहलाता है । एक-एक अंग का रहस्य भावित करने से परमानन्द का स्वाद आयेगा। उसके बाद वर्क-बादला आदि से प्रभु की अंगरचना करते है, वह वस्त्र-सत्कार पूजा कहलाती है। उसमें यह चिन्तन करना है कि हे प्रभु ! जिस प्रकार इस अंगरचना से आपका देह शोभित होता है, उसी तरह सम्यग्दर्शन और ज्ञानद्रष्टि से मेरी आत्मा सुशोभित बने । मेरे नाथ ! आपकी ही कृपा से मेरे द्वारा प्राप्त की गयी लक्ष्मी मेरे स्वयं के व कुटुंब के उपभोग के नाले में बही जा रही है, उसमें से सिर्फ आपकी अंगरचना में खर्च की गयी लक्ष्मी ही कृतार्थ हुई। मुझे कृतज्ञता दीजिये। __ आभरण-पूजा में भी प्रभु के अंग को शोभित करके अपनी आत्मा में सम्यग्दर्शन, और ज्ञानद्रष्टि की सुशोभितता मांगे। Jain Education International Private Personal Use Onlyww.jainelibrary.org
SR No.003231
Book TitleAshtaprakari Navang Tilak ka Rahasya Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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