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(३) पुष्प पूजा
सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजो गत संताप । सुम जंतु भव्य ज परे, करीये समकित छाप ॥
तीसरी पुष्प पूजा में यह चिन्तन करना है कि, प्रभु ! पुष्प सुमनस् कहलाता है तो आपको सुमनस् चढाते हुए ( अर्पण करते हुए) मुझे भी आप सुमनस् अर्थात् अच्छा, प्रशान्त - प्रसन्न, परार्थ रसिक मन दीजिये । प्रशान्तता से काम, क्रोध, लोभादि कषायों से होने वाली अशान्ति और गरमी मिटे । प्रसन्नता से दुर्ध्यान और असंतोष की पीडा जाएगी और परार्थ रसिकता से स्वार्थान्धता मिटेगी । पुष्प पूजा में ऐसा चिन्तन भी किया जा सकता है कि, हे प्रभु पुष्प के कोने-कोने में सुवास और सौन्दर्य भरा है, इसी तरह पुष्प पूजा से मेरी आत्मा
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