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-> इस्लांपुर का इतिहास <। दक्षिण महाराष्ट्र में सांगली जिल्हे में धन-धान्य से समृद्ध एवं धर्मभावना से समृद्ध नगरे है इस्लांपुर। यहां पूर्वकाल से अजैन धर्मीओं के पुष्कल मंदिर थे । अतः ईश्वरपुर नाम से यह नगर प्रसिद्ध था । लेकिन कालांतर में राज्य परिवर्तन होने के कारण नाम परिवर्तन हो गया..... इस्लामपुर । करीब 65 साल पूर्व यहां व्यवसायार्थ आये हुए श्रावकों के 15-20 घर थे । जहां जैन वहां जिनमंदिर.... धनराशि अल्प होने पर भी भावना का प्राबल्य अनल्प था । जिन के वंशज होने का हमें भारी गौरव है, ऐसे हमारे पूर्वजोंने हाथ में हथोडी-कुल्हाडी इत्यादि स्वयं उठाकर एक जिनमंदिर का निर्माण किया । नजदीक के पेठ गांव से श्री वासुपूज्य स्वामी की प्रभावपूर्ण प्रतिमा प्राप्त हुई और विक्रम संवत 2006 ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी सोमवार ता.22-5-1950 के शुभदिन पू. पंन्यास प्रवरश्री नविन विजयजी गणिवर्य की शुभनिश्रा में महोत्सवपूर्वक प्रतिष्ठा हुई । प्रभु के प्रभाव से सारे शहर की और श्रीसंघ की सभी दृष्टि से वृद्धि होने लगी । श्रावक परिवारों की संख्या भी बढने लगी ।
अनेक बार साधु साध्वीजी भगवंतों के चातुर्मास होने से धर्मभावना में वृद्धि होने लगी, जिसके प्रभाव से श्री संघ में दीक्षा, उपधान, छरीपलित संघ, सुवर्ण महोत्सव आदि अनुष्ठान उल्लास से हुए । श्रावकों की संख्या एवं समृद्धि को नजर में लेकर पूज्य गुरुदेवों ने नूतन शिखरबद्ध जिनमंदिर के लिये प्रेरणा की । श्री संघ ने भव्य शिखरबद्ध जिनमंदिर का निर्माण करवाया, जिसकी अंजनशलाका-प्रतिष्ठा का ऐतिहासिक महोत्सव पूज्यपाद गुरुदेव श्री विजय अभयशेखरसूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रामें बडे ठाठ से हुआ। हमारे पूरे संघ के परमश्रद्धेय इन्हीं गुरुदेव का सिद्धितप-वर्धमानतपपायाउपधानतप आदि से यशस्वी चातुर्मास वि. सं. 2062 में हुआ।
पूज्यपाद गुरुदेव की प्रेरणा एवं कृपा से ही हमें श्री अनुयोगद्वार जैसे महत्त्वपूर्ण आगम ग्रन्थ के प्रकाशन में हमारे ज्ञाननिधि से सम्पूर्ण अर्थसहयोग का लाभ मीला है, जिसको हम हमारा महान् सौभाग्य समजते है । पूज्य गुरुदेव हमें भविष्य में पुनः भी ऐसा लाभ दे ऐसी विनंती के साथ गुरुदेव के चरणों में कोटिशः वन्दना।
श्री जैन श्वेताबंर मूर्तिपूजक संघ, इस्लांपुर
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