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उ. प्रथम देवलोक के इंद्रकी आज्ञासें तिसके सेवक हरिनगमेषी देवताने संहरण कीना तिसका कारण यह है कि कदाचित् नीच गोत्रके प्रभावसे तीर्थंकर होने वाला जीव नीच कुलमें उत्पन्न होवे, परंतु तिस कुलमें जन्म नहीं होता है इस वास्तै अनादि लोक स्थीतीके नियमोसें इंद्र सेवक देवतासें यह काम करवाता है ।
प्र.२२. अपनी शक्तिसें महावीरस्वामी त्रिशलाकी कूखमें क्यों न
गये.
उ. जन्म मरण गर्भमें उत्पन्न होनां यह सर्व कर्मके अधीन है । निकाचित् अवश्य भोगे विना जे न दूर होवे ऐसे कर्मके उदयमे किसीकीभी शक्ति नही चल सक्ति है और जो लोक इश्वरावतार देहधारीकों सर्वशक्तिमान् मानते है सो निकेवल अपने माने ईश्वर की महत्वता जनाने वास्ते जेकर पक्षपात छोडके विचारीये तो जो चाहेसो कर सके ऐसा कोइनी ब्रह्मा, शिव, हरि, क्रायस वगेरे मानुष्योमे नही हुआ है. इनोंके कर्तव्योकी इनका पुस्तकें वांचीये तब यर्थार्थ सर्व शक्ति विकल मालुम होजावेंगे. इस कारण से सर्व जीव अपने करे कर्माधीनहै इस हेतुसे श्री महावीरस्वामी अपनी शक्तिसें त्रिशला माताकी कूखमें नहीं जा सकते है ।
प्र.२३. महावीरस्वामीके कितने नामथे.
उ. वीर १ चरमतीर्थकृत २ महावीर ३ वर्द्धमान ४ देवार्य ५ ज्ञातनंदन ६ येह ६ नाम है १ वीर बहुत सूत्रों मै नाम है १ चरमतीर्थकृत कल्पादि सूत्रे २ महावीर ३ वर्द्धमान यह तो प्रसिद्ध है बहुत शास्त्रों मे, देवार्य, आवश्यकमें, ज्ञातनंदन, ज्ञातपुत्र, आचारंग दशाश्रुतस्कंधे ७ छहों एकथे हेमाचार्यकृत् अभिधानचिंतामणि नाममालामे है.
प्र.२४. श्री महावीरस्वामीका बड़ाभाइ और तिनकी बहिनका क्या क्या नाम था ।
उ. श्री महावीरस्वामीके बड़ा भाइका नाम नंदिवर्धन और बहिनका नाम सुदर्शना था ।
प्र.२५. श्री महावीर के उपर तिनके माता पिताका अत्यंत राग था के
नही.
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