________________
उत्पन्न होते है तहांसें काल कर मनुष्य क्षेत्रमें बहुत भारी रिद्धि परिवारवाले उत्तम शुद्ध राज्य कुलमें उत्पन्न होते है जेकर पूर्व जन्मभे निकाचित पुन्यसें योग्य कर्म उपार्जन करा होवे तबतो तिस योग्य कर्मानुसार राज्य भोगविलास मनोहर भोगते है नही भोग्यकर्म उपार्जन करा होवे तब राज्यभोग नही करते है इन तीर्थंकर होनेवाले जीवांकों माताके गर्भमेंही तीन ज्ञान अर्थात् मति श्रुति अवधी अवश्यमेव ही होते है दीक्षाका समय तीर्थंकर के जीव अपने ज्ञान से ही जान लेते है जेकर माता पिता विद्यमान होवें तबतो निकरी आज्ञा लेके जेकर माता पिता विद्यमान नही होवे तब अपने भाइ आदि कुटुंबकी आज्ञा लेके दीक्षा लेने के एक वर्ष पहिले लोकांतिक देवते आकर कहते है हे भगवान् धर्म तीर्थ प्रवर्तीवो तद पीछे एक वर्ष पर्यंत तीनसौ कोटि अठयास्सी करोड असी लाख इतनी सोने मोहरें दान देके बडि महोत्सव से दीक्षा स्वयमेव लेते है किसीको गुरु नही करते है क्योंकि वेतो आपही त्रैलोक्य के गुरु होनेवाले है और ज्ञानवंत है तद पीछे सर्व पापके त्यागी होके महा अद्भुत तप करके घाती कर्म चार क्षय करके केवली होते है तद पीछे संसार तारक उपदेश देकर धर्म तीर्थके करनेवाले ऐसे पुरुष तीर्थंकर होते है उपर कहे हुए वीस धर्म कृत्योंका स्वरुप संक्षेपसे नीचे लिखते है । अरिहंत १ सिद्ध २ प्रवचन संघ ३ गुरु आचार्य ४ स्थविर ५ बहश्रत ६ तपस्वी ७ इन सातों पदोका वात्सल्य अनुराग करने से इन सातों के यथावस्थित गुण उत्कीर्तन अनुरुप उपचार करने से तीर्थंकर नाम कर्म जीव बांधता है इन पूर्वोक्त सातों अर्हतादि पदोंका अपने ज्ञान में वार वार निरंतर स्वरूप चिंतन करे तो तीर्थंकर नाम कर्म बांधे ८ दर्शन सम्यक्त्व ९ विनय ज्ञानादि विषये १० इन दोनोकों निरतिचार पालेतो तीर्थंकर नाम कर्म बांधे. जो जो संयमके अवश्य करने योग्य व्यापार है तिसकों अवस्यक कहते है तिसमें अतिचार न लगावे तो तीर्थंकर नाम कर्म बांधे ११ मूलगुण पांच महाव्रतमें और उत्तरगुण पिंडविशुद्धयादिक ये दोनो निरतिचार पाले तो तीर्थंकर नाम कर्म बांधे १२ क्षण लव मूहर्तादि कालमें संवेग भावना शुभ ध्यान करनेसे तीर्थंकर नाम कर्म बांधता है १३ उपवासादि तप करने से यति साधु जनकों उचित दान देने से तीर्थंकर नाम कर्म बांधे है १४ दश प्रकार की वैयावृत्य करने से तो १५ गुरुआदिकांकों तिनके कार्य करणे गुरु आदिकोंके चित्त स्वास्थ रुप सामाधि उपजावनसे ती० १६ अपूर्वअर्थात् नवा नवा ज्ञान पढने से ती० १७ श्रुत भक्ति युक्त प्रवचन विषये प्रभावना
-
206006ada0AGE0%A00000AGBAGDAGRAdoos
00000000000GEAGOOGOOGOOGOOGCACASSAGE
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org