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उ. श्री कुमारपाल राजा के श्री सम्यक्त मूल बारांव्रत पालनके थे ।। त्रिकाल जिन पूजा. १ अष्टमी चतुर्दर्शामें पोषधोपवासके पारणे में जो देखने में कोइ पुरुष आया तिसकों यथार्थ वृत्ति दान देकर संतोष करना २ और जो कुमारपालके साथ पोषध करते थे तिनको अपने आवास में पोषध करते थे तिनको अपने आवास में पारणा करानां ३ टूटे हए साधर्मिकका उद्धार करना, एक हजार दीनार देना ४ एक वर्षमें साधर्मियोकों एक करोड दीनार दीने ऐसे चौदह वर्ष में चौदह करोड दीनार दीने ५ अठनवे लाख ९८ रूपक उचित दान में दीने, ६ बहत्तर ७२ लक्ष रूपक द्रव्यके पत्र निसंतान रोनेवालीके फाडे ७ इक्कीस २१ कोश (ज्ञानभंडार) लिखवाए १८ नित्य प्रतें श्री त्रिभुवनपाल विहार (जो कुमारपालने छानवे ९६ करोड रुपकके रचसें जिन मंदिर बनवाया था) तिसमें स्नात्रोत्सव करनां ९ श्री हेमचंद्रसूरि के चरणोंमे द्वादशावर्त वंदन करनां १० पीछे क्रमसें सर्व साधुयोको वंदन करतां ११ जिस श्रावकने पहिला पोषधादि व्रत करे होघे तिसको वंदन, मान, दानादि करनां १२ अठारह देशो मे अमारीपटह कराया १३ न्याय घंटा बजानां १४ और अठारह देशोके सिवाय अन्य चौदह देशो में धनबल सें मैत्रीबलसें जीव रक्षाका करानां १५ चौदहसौ चौतालीस १४४४ नवीन जिन मंदिर बनवाए १६ सोलेसौ १६०० जीर्ण जिन मंदिरोका उद्धार कराया १७ सातवार तीर्थ यात्रा करी १८ ऐसे सम्यक्तकी आराधना करी || पहिले व्रतमे अपराधी विना मारो ऐसे शब्दके कहने से एक उपवास करनां १ दूसरे व्रतमे भूलसे जूठ बोला जावे तो आचाम्लादि तप करना २ तीसरे व्रतमें निसंतान मरेका धन नही लेनां ३ चौथे व्रतमें जैनी हुआ पीछे विवाह करणेका त्याग और चौमासेके चार मास त्रिधा शील पालनां, मनसें भंगे एक उपवास करना, वचनसें भंगे एकाचाम्ल, कायसें भंगे एकाशन. एक परनारी सहोदर बिरुद धरनां. भोपलदेवी आदि आठों राणीयोंके मरे पीछे प्रधानादिकों के आग्रहसेंभी विवाह करना नही , ऐसा नियम भंग नहीं करा . आरात्रिकार्थ सोनेमयि भोपलदेवीकी मूर्ति करवाइ, श्री हेमचंद्रसूरिजीए वासक्षेप पूर्वक राजर्षि बिरुद दीना ४ पांचमे व्रतमें छ करोडका सोना, आठ करोडका रूपा, हजार तुला प्रमाण महर्घ्य मणिरत्न, बत्तीस हजार मणधृत, बत्तीस हजार मण तेल, लक्षा शालि चने, जुवार, मूंग प्रमुख धान्योके मूंढक रखे पांच लाख ५००००० अश्व, पांच हजार ५०००, हाथी, पांचसौ ५०० ऊंट, घर, हाट, सभायान पात्र गाडि वाहिनीये सर्व अलग
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