________________
का त्याग करें । शान्ति से ही व्यवसायियों की अथसिद्धि होती है। (४) विवाद में मध्यस्तों को मान्य रखें। (५) न्याय-नीति ही धन कमाने की कुञ्जी है। न्याय से लाभान्तराय कर्म का क्षय होता है । अतः भविष्य में अवश्य धनलाभ होता है । (६) घर के बड़े और राज्याधिकारी को छोड़कर गोपनीयता को दूसरों के आगे खुली न करें और न ही झूठ बोलें । (७) विषम स्थिति में सहायक हो सके ऐसा मित्र रखें । मुख की मधुरता तो दुर्जनों के साथ भी रखें । (८) प्रीति के स्थान में लेन-देन के सम्बन्ध न रखें । (९) अमानत रखते और सौंपते समय साक्षी रखें । (१०) लेन-देन का ब्यौरा लिखने में आलस न करें। (११) किसी समर्थ नायक को आगे रखें । (१२) देव-गुरु-धर्म वगैरह की शपथ न लें एवं जमानत की झंझट में न पड़े। (१३) वाणिज्य निवासस्थान में करें । कभी परदेश में करना पड़े तो सावधानी रखे। (१४) क्रय-विक्रय के प्रारम्भ में परमेष्ठी वगैरह का स्मरण करें । (१५) धनोपार्जन की भूमिका रूप शुभ में व्यय के मनोरथ करें | शुभ में व्यय लक्ष्मी का वशीकरण मंत्र है। (१६) आयोचित व्यय रखें जो कि न्याय-नीति का मूल है। (१७) धन की अनन्त इच्छा को स्थूल परिग्रह विरमण व्रत के स्वीकार से सीमित करें।
परदेश्-व्यवसाय में रखने की सावधानी (१) शुभमुहूर्त में अच्छे शकुन-निमित्त लेकर, इष्ट देवता एवं घर के बड़ों को नमस्कार कर और गुरुभगवन्तों के श्रीमुख से मांगलिक सुनकर भाग्यशालियों के साथ परदेश जाना चाहिए। परदेश में भी अपनी जाति वालों के साथ रहें और व्यवसाय करें। (२) उचित आडम्बर और धर्म-निष्ठा को न छोड़े। (३) सदैव यथाशक्ति दान वगैरह से लक्ष्मी को सार्थक करें। अवसर पर पुण्य के बड़े कार्य भी करें।
गुरु भगवंत के पास ज्ञानाभ्यास शाम को काम-धन्धे से लोटकर उपाश्रय में आकर सामायिक लेकर गुरु भगवन्त के पास ज्ञानाभ्यास करें । नित्य नूतन ज्ञानोपार्जन करें। ज्ञान से असीम आनन्द का अनुभव होता हैं ।
उपाश्रय से घर आकर एकाशनादि न हो तो शाम के भोजन से निवृत्त होकर सीमित जल से हाथ, पाँव और मुख की शुद्धि करें | पश्चात् मंगल दीपक, आरती आदि से श्री जिनेश्वर की पूजा करें तथा प्रतिक्रमण करें | इस प्रकार से दैनिक कर्तव्यों का पालन करने वाली आत्मा अवश्य शाश्वत सुख की भोक्ता बनती है |
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org