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________________ चिन्हके पेटेका है, तद पीछे सो अर्यरोहनिय (आर्य रोहनके ताबेका ) अथवा आर्य रोहनने स्थाप्या हुआ, अर्थात् संस्कृतमें आर्य रोहण होता है, इस नामका आचार्य जैन दंत कथामें अच्छीतरे प्रसिद्ध है, कल्पसूत्र एस. वी. इ. पत्र २९१ में लिखे मूजब सो आर्य सुहस्तिका पहिला शिष्य था, और तिसनें उद्देह गण स्थापन करा था, इस गणकी चार शाखा और छकुल हुए थे, तिसकी चौथी शाखाका नाम पूर्ण पत्रिका मुख्यकरके तिसके विस्तारकी बाबतमें इस लेख के नाम पेतपुत्रिकाके साथ प्रायें मिलता आता है, और यह पिछला नाम सुधारके तिसकों पोनपत्रिका लिखनेमें मैं शंकाभी नही करता हूं, सोइ नाम संस्कृतमें पौर्ण पत्रिकाकी बराबर होवेगी, और सो व्याकरण प्रमाणे पूर्ण पत्रिका करते हुए अधिक शुद्ध नाम है, इन छहों कुलोंमे सें परिहासक नामभी एक कुल है, जो इस लेखमें क्षर गए हुए नाम पुरधि क के साथ कुछक मिलतापणा बतलाता है, दूसरे मिलते रूपों उपर विचार करता हुआ मैं यह संभवित मानताहूंके, यह पिछला रूपपरिहा . क के बले भूलसें बांचने में आया है, दूसरी पंक्तिके अंतमे पूरुषका नाम प्रायें छठ्ठी विभक्तिमें होवे, और देवदत्त व सुधारके देवदतस्य कर सकते है । ऐसें पूर्वोक्त सुधारेसें प्रथम दो पंक्तियां नीचे मूजब होती है || १ सिद्ध (म्) नमो अरहतो महावीर (अ) स्य् (अ) देवनासस्या. २. पूय्र्यव्, (ओ) य् (ए) अय् र् (ओ) ह् (अ) नियतोगण (तो) प् (अ) रि (हास) क् (अ) कुल (तो) प् (ओन्) अप् (अ) त्रिकात् (ओ) साखातोगण (इ) स्य अय्य-देवदत्त (स्य) न... इसका तरजुमा नीचे लिखे मुजब होवेगा. 'फतेह' देवतायोंका नाश करता अरहत महावीरकों प्रणाम (यह गुण वाचक नामके खरेपणे में मेरेकों बहुत शक है, परंतु तिसा सुधारा करनेकों में असमर्थ हूं) राजा वासुदेवके संवत्के ९८ मे वर्षमें वर्षाऋतुके चौथे महीने में मिति ११ मीमें इस मितिमें... परिहासक (कुल) में कापोन पत्रिका (पौर्णपत्रिका) शाखाका अरय्य रोहने (आर्यरोहने) स्थापन करी शाला ( गण ) मेंका अरयय देवदत (देवदत्त) ए शालाका मुख्य गणि । यह लेख एकल्ले देखने सें यह सिद्ध करते है के मथुरांके जैन साधुयोंने संवत् ५ सें ९ अठानवें तक वा इसवी सन ८३ । वा ८४ सें लेके सन इसवी १६६ वा १६७ के बीच में जैनधर्माधिकारी हुदेवालोंने परस्पर एक संप करा था, और तिनमे से कितनेक Jain Education International ००००००० ९५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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