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प्रथम लेख सुधरा हुआ नीचे लिखा जाता है. सिद्धं ।सं.२०। ग्रामा १। दि १०+५ । कोटियतो, गणतो, वाणियतो, कुलतो, वएरितो, शाखातो, शिरिकातो, भत्तितो वाचकस्य अर्य्य संघ सिंहस्य निर्वर्त्त नंदत्तिलस्य...वि.. लस्य कोट्बिकिय, जयवालस्य, देवदासस्य, नागदिनस्य च नागदिनाये, च मात् श्राविकारो दिनाये दानं ।इ। वर्द्धमान प्रतिमा. इस पाठका तरजुमा रूप अर्थ नीचे लिखते है, "फतेह' संवत् २० का उस कालका मास १ पहिला मिति १५ ज्वल (जयपाल) की मात वी...लाकी स्त्री दतिलकी (बेटी) अर्थात् (दिन्ना अथवा दत्ता) देवदास और नागदिन (नागदिन्न अथवा नागदत्त) तथा नागदिना (अर्थात् नागदिन्ना अथवा नागदत्ता) की संसारिक स्त्री शिष्यकी बत्रीस कीर्तिमान् वर्द्धमानकी प्रतिमा (यह प्रतिमा) कौटिक गच्छमेंसें वाणिज नामे कुलमेंसें वैरी शाखाकी सीरीका भागके आर्य संघ सिंहकी निर्वरतन है, अर्थात् प्रतिष्टित है. ।। इति डाक्टर बूलर ||
अथ दूसरा लेख. नमो अरहंतानं, नमो सिद्धानं, सं. ६० +२ ग्र.३ दि. ५ एताये पूर्वायेरारकस्य अर्यककसघ स्तस्य शिष्या आतापेको गहवरी यस्य निर्वतन चतुवस्यन संघस्य या दिन्ना पडिभा (भो.१) ग. (१?) वैहिका ये दत्ति ।। इसका तरजमा ।। अरहंतने प्रणाम, सिद्धने प्रणाम, संवत ६२ यह तारीख हिंदुस्थान और सीथीआ बीचके राजायों के संवत के साथ संबंध नहीं रखती है, परंतु तिनोसें पहिले के किसी राजेका संवत् है, क्योंकि इस लेखकी लिपी बहत असल है. उष्ण कालका तीसरा मास ३ मिति ५ उपरकी तारीख में जिस समुदायमें चार वर्गका समावेश होता हैं, तिस समुदायके उपभोग वास्ते अथवा हरेक वर्गके वास्ते एकैक हिस्सा इस प्रमाणसें एकाया। देनेमें आया था ।या। यह क्या वस्तु होवेगी सो मैं नहीं जानता हुं, पति भोग अथवा पति भाग इन दोनों में से कौनसा शब्द पसिंद करने योग्य है के नही, यहभी मैं नहीं कह सकता हूं (आ) आतपीको गहवरीरारा (राधा) कारहीस आर्य-कर्क सघस्त (आर्य-कर्क सघशीत) का शिष्यका निर्वतन (होइके) वइहीक (अथवा वइहीता) का बत्रीस, यह नाम तोडके इस प्रमाणे अलग कर सकते है, आतपीक-औगहब-आर्य पीछेके भागमें यह प्रगट है कि निर्वतन याके साथ एकही विभक्ति में है, तिस वास्ते अन्य दूसरे लेखोमेंभी बहुत करके ऐसीही पद्धतिके लेख लिखे हुए है, निर्वर्तयतिका अर्थ सामान्य रीते सो रजु करता
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