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________________ 'आप भला' सम्बन्धी सासबहू का द्रष्टान्त : एक परोपकारी सज्जन किसी गाँव में गये। वे एक ऐसे घर उतरे जहाँ सास - बहु की खटपट चालू थी । इन महानुभाव को अधिक ठहरना नहीं था, अतः घर के पुरुष के साथ बातचीत कर अब जाने की तैयारी कर रहे थे कि लडके की पत्नी आकर उन्हें देख कर धीरे से कहने लगी, 'जा तो रहे हैं, लेकिन मेरी सासजी को जरा अच्छी सलाह देते जाईये। इन्हें बात बात में किटकिट करने को चाहिए ।' ये परोपकारी सज्जन बोले 'ठीक है। उन्हें बाहर आने दो, ताकि दो शब्द उचित कहूँ किन्तु तुम जरा इतना करना कि जब वे कुछ बोलें तब तुम मात्र ये दो शब्द ... कहना' ऐसा कह कर क्या बोलना, यह बताया । उसके बाद थोड़ीसी राह देखी। लेकिन सास जल्दी बाहर नही आयी, इन साहब को जाने की जल्दी थी, अतः उन्होंने बहू से कहा- 'मैं महीने बाद फिर आऊँगा तब कहूँगा' ऐसा कह कर वे तो वहाँ से चले गये । अब एक महीने बाद उक्त सज्जन का पुनः उस गाँव में आगमन हुआ। वे किसी घर उतरे तो सास ने आकर उनसे पूछा, 'आप पहले यहाँ आये थे, उस वक्त मेरी बहू को आप कौनसा मंत्र दे गये थे कि जिससे यह तो देवी जैसी बन गयी है।' उस सज्जन ने पूछा 'क्यों ? किस तरह दैवी जैसी बन गयी ? सास ने कहा, 'आप के आने से पहले तो बहू की कुछ भूल चूक हो और मैं जरा गुस्से में भरकर उसे जरा उलाहना दूँ तो उसकी डेढ गज लंबी जुबान मुझे कितना ही सुना देती । लेकिन आपके आ जाने के बाद आप न जाने कौनसा मंत्र पढ़ा गये जिससे ऐसा चमत्कार हुआ कि मैं उसपर सच्चा या झूठा जब जब गुस्सा कर उस से कठोर वचन भी कहती हूँ तब यह हाथ जोडकर नरमी से कहती है, 'माताजी ! मैं जैसी हूँ वैसी हूँ, आपको बेटी की तरह मुझे निभाना है।' बस ! इतना कहने के सिवा और कुछ नहीं बोलती, और इसके इन मृदु विनयपूर्ण वचनों से मेरा क्रोध शान्त हो जाता। बाद में दो बार, चार बार, ये के ये शब्द सुनने को मिलने के कारण मुझे भी महसूस होने लगा कि 'मैं ही बुरी हूँ जो बात-बात में गुस्सा करती हूँ? अपनी पुत्री पर जरा जरा में गुस्सा कहाँ करती हूँ ?' उसे मैं ऐसे तीक्ष्ण हृदयवेधक वचन कहाँ सुनाती हूँ ? बस, तब से मेरा भी हृदय पिघल गया, परिवर्तित हो गया। फिर तो बहू एक देवी - सी लगती है। आपका बड़ा उपकार मानती हूँ ।' यह क्या हुआ ‘आप भला तो जग भला' यह सूत्र बहू ने अपना लिया। सास के अकारण क्रोध में भी और हृदयवेधक वचनों में भी बहू ने नम्रतापूर्वक एक ही आपको बेटी की तरह मुझे निभाना है' इन शब्दों द्वारा सूचित किया कि 'आप बहुत भली हैं, मेरी ही ८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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