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मंत्रणा करता है। उसमें उसने जो बात प्रस्तुत की उसमें उसके वचन ऐसे थे जिनमें उसका अभिमान प्रकट होता था। इसलिए उसके भाई विभीषण ने उसका यह अभिमान देखकर, उठकर नम्रता और विनयपूर्वक कहा :
___ 'भाई साहब ! यों भी पर स्त्री का अपहरण करना हमारे उच्च कुल के लिए शोभास्पद नहीं है। तदुपरान्त अब तो जब सीता ही मानने को तैयार नहीं, तो अच्छा यही है कि उसे वापस सौंप दिया जाए । व्यर्थ युद्ध होगा; और राम-लक्ष्मण भी बल में कुछ कम नहीं हैं; तो क्यों व्यर्थ जिद पकड़ कर हम विनाश को मुफ्त का आमंत्रण दें?
विभीषण ने इतनी सलाह दी सो भी कब? भाई रावण का अभिमान उसके वचनों में प्रकट हो गया तब ! बोलने-चालने में अभिमान दिखाई दे जाता है, अतः भाग्य हो तो कोई सलाहकार मिल जाता है। परन्तु
मायावी विनयरत्न :___ माया तो अपना कोई लक्षण ही प्रकट होने नहीं देती। तब मायावी जीव को उससे वापिस लौटाने कौन मिले ? विनयरत्न कालिकसूरिजी महाराज के पास बारह साल रहा; था पक्का मायावी परन्तु आचार्य महाराज जैसे भी उस की माया को पहचान नहीं सके इसलिए वह उदायी राजा का खून करने में सफल हुआ। अन्यथा, वह पूर्ण विनयी होते हुए भी यदि आचार्य भगवन्त जानते कि वह जरा भी मायावाला है तो राजा को पौषध में धर्म-चर्या देने के मौके पर उसे राजमहल में क्यों ले जाते?
लोभ में लक्षण प्रकट होते है :
इसीलिए बहुत सावधान रहना चाहिए कि, जिससे हम माया के सेवक न बनें। क्रोध, मान के वैसे ही लोभ के भी लक्षण बाहर दिखाई देंगे, और भाग्य जाग्रत हो तो कोई उसमें लौटने का उपदेश देनेवाले भी मिल जायें।
हाँडा और वस्तुपाल
वस्तुपाल को सिद्धगिरि की पहली यात्रा में तंबू तानने की कील गाडते वक्त धन से भरा हाँडा मिला। उसका लोभ जगा, ममता जगी, वह शब्दों में प्रकट हो गयी। क्योंकि जब इस विषय में छोटे भाई की पत्नी अनुपमा देवी से पूछा कि 'यह हाँडा कहाँ गाडें, जिससे यात्रा से लौटने पर काम लगे? तब अनुपमा ने इन वचनों में ममता परख ली। तभी तो उसने सलाह दी कि 'नीचे गाडकर क्या कीजिएगा? जिसे नीचे जाना हो वह ऐसा करे। ऊँचे चढ़ने वालें तो ऊँचे गाड़ते है। अतः गाड़ना ही हो तो ऐसे ऊँचे गाड़ो कि सारी दुनिया इसे देखे फिर भी इसमें से लेशमात्र भी चुरा न सके।
'बात तुम्हारी सच्ची है पर ऊँचे कहाँ गाड़ें? ' 'वहाँ-तीर्थाधिराज के शिखर पर, जहाँ जा रहे हैं। मंदिर एवं शिखर में जहाँ टूटफूट हुई हो अथवा धुंधलापन आया हो वहाँ लगा दिया जाए।' मंत्री ने कहा - 'समझ
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