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माया से जन्मों की सृष्टि होती है शास्त्रकारों का यह वचन सूचक है; क्योंकि यों तो क्रोध, मान, माया-लोभ इन चारों कषायों को संसारवृक्ष का मूल कहा गया है, अर्थात् क्रोधादि सभी कषायों से संसार के भवों की उत्पत्ति होती है, अतः वस्तुतः कषाय संसार के जनक हैं, फिर भी माया की बात आयी तब उसे खास तौर पर संसार की जननी-माता कहा गया। यह माया की विशेष भयानकता बताता है।
__माया विशेष भयावह होने का कारण यह कि वह गुप्त छुपी रहती है। क्रोध फिर भी मुँह की रेखाओं से वाणी से तथा बर्ताव पर से पहचान लिया जाता है। क्रोध में आँखें लाल होती हैं, धमधमाट के शब्द निकलते हैं, बोलचाल बन्द की जाती है, या हाथ पैरों की विशिष्ट हरकतें की जाती है, आदि सब होता है। इसी तरह अभिमान में भी सीना तानना, सिर और कंधे उचकाना, भौहें चढ़ाना, वचनों में अभिमान टपकना... ऐसे ऐसे प्रकट लक्षण बाहर दिखाई देते हैं, तब लोभ में भी क्या है ? लोभ, राग, ममता का बातचीत में कामकाज में पता चल जाता है; और वस्तु की तीव्र लालसा के कारण काया की तदनुसार दौडधूप की प्रवृत्ति रागवश प्यार-दुलार की प्रवृत्ति या अधिक सम्हालने की प्रवृत्ति से भी लोभ, राग, ममता प्रकट दिखाई देते हैं।
(१) क्रोध के उदाहरण में देखिये-अग्निशर्मा :
तापस तीसरा पारणा चूक जाने पर राजा गुणसेन पर क्रुद्ध हुआ, तो तपोवन को लौटते समय उसके धमाधम भरे वचन, गुरु को नकद जवाब, राजा की अतिशय निंदा.... आदि ऐसा आचरण करने लगा कि इससे उसका क्रोध प्रकट हआ, स्पष्ट दिखाई दिया। दूसरों ने देखा कि उसे गुस्सा चढ़ा हुआ है, परन्तु प्रकटता इतनी अच्छी तो है कि क्रोध को जानकर कुलगुरु तथा तापसों ने उसे क्रोध छोड देने को समझाया ।
"देखो ! हम लोग तपोधर्म वाले हैं, हमें क्रोध नहीं करना चाहिए। हमें तो सामना नहीं, सहन ही करना चाहिए । सहन करने से हमारे धर्म में वृद्धि होती है। राजा तो शुभभाववाला है। वह किसी भी कारण से भूल गया होगा। उस पर द्वेष नहीं, दया ही रखनी चाहिए।' आदि आदि समझाया।
निःसन्देह अग्निशर्मा अति क्षुधा के कारण, आहार-संज्ञा में और अज्ञान दशा में दबा होने से समझा नहीं, परन्तु हमारी बात यह है कि गुस्से के चिह्न बाहर दिखाई देते हैं। अतः यह देखकर गुस्से से पीछे हटने की सलाह देनेवाला कोई सज्जन मिलने की संभावना रहती है। जब कि माया के तो कोई लक्षण ही बाहर नहीं दिखते, तब उसमें से पीछे हटने का समझाने वाला कौन मिले? इसीलिए तो माया, क्रोध से अधिक भयावह है।
(२) तो अभिमान में क्या होता है ?
इसमें लक्षण बाहर प्रकट हो जाते हैं। रावण सीता का अपहरण कर जाता है। उसके बाद सीता उसका कहना मानने से साफसाफ इन्कार करती है तब रावण सभा बुलाकर
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