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________________ हूँ, उसी अभिमान का संयोग कायम रहनेवाला नहीं है । तो मैं पहले ही उसे पैर क्यों जमाने दूँ। यह विवेक नहीं है , अतः अभिमान में चढ़ा तब तो आँख मूंद कर चढा । परन्तु अब उसे छोड कर भीगी बिल्ली बन गया, दीन-लाचार बन गया; क्योंकि निर्दोष, प्रेममय माता-पिता, पत्नी की एक साथ ऐसी भीषण कुमौत मेरे ही कारण हुई है यह उसकी समझ में आया । यह देखकर कँपकँपी छूटने लगी। ARNESSMS Bl L AMREN 20RSAMIRECE00580000MAMINAger's Horseenetwentungenimams Media | मानभट का पश्चात्ताप मानभट का पश्चात्ताप :उसके मन को भयानक आघात लगा और वह विलाप करने लगा कि 'हाय ! मैं मूर्ख यह क्या कर बैठा? इन तीनों को झूठे भ्रम में डालकर मरने दिया? लेकिन मैंने परलोक का विचार ही नहीं किया कि ऐसे घोर पाप के फलस्वरूप भवान्तर में मेरी कैसी भयानक दुर्दशा होगी? यहाँ तो क्षणभर का कषाय का आवेश लेकिन परभव में इसकी सजा दीर्घकालीन होगी! हाय ! तो क्षणिक कषायावेश से क्या सार पाया ? (१)धर्म को भूला :. 'अरे! मैने अपना पुत्रधर्म या पतिधर्म भी नहीं सोचा? ये लोग चाहे भ्रम में खिंच रहे हो लेकिन क्या मेरा फर्ज नहीं था कि इन्हें रोकूँ ? यदि ऐसा कोई फर्ज़ न हो तो मुझमें और एक पशु में क्या फर्क रहा ? खोल मानव का परन्तु दिल जनावर का, जिससे इतने निकट-सम्बन्धियों के प्रति भी धर्म का विचार ही नहीं करने दिया। मनुष्यता तो यह है जो हर एक धर्म को ध्यान में लेकर उस के पालन में सावधान रहे, जाग्रत रहे। धर्म के ख्याल और पालन के बिना मानवता ही क्या? (२) उपकार को भूला : मानभट पश्चात्ताप कर रहा है कि 'अरे! मैं कैसा मूर्ख कि माता-पिता के उपकार की भी परवाह नहीं की। उनके असंख्य उपकारों के बदले में मुझे इतना भी नहीं सूझा कि 'जरा पेड की ओट से निकल कर उनकी निगाह में जाऊं, जिससे ये मुझे जिन्दा जानकर कुएँ में न कद पडें? एक जानवर भी उपकारी के प्रति इतना निर्दय नहीं होता। (३) प्रेम को भूला : 'जब कि मैंने तीनों के साथ के अपने प्रेमसम्बन्ध की भी परवाह नहीं की? परलोक, धर्म और उपकार भूल गया, लेकिन प्रेम भी...भूल गया? जिससे ऐसा अत्यंत निष्ठुर, निःस्नेह बनकर उन्हें भ्रम में कुएँ में गिरने दिया-सो भी अपनी नजर के सामने ? (४) भक्ति को भूला :'तो क्या मुझ नराधम को गुरु भक्ति भी याद नहीं रही? कि अपने ऐसे पूज्य माता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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