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| ताता बहुत नही तानना जिस लड़के का पढ़ने का रस मर चुका हो, और जो आवारा बन गया हो उसे पढ़ाने का बहुत आग्रह रखने वाले पिता को ऐसा विषाद भोगने की नौबत आती है। क्योंकि लड़का पढ़ता तो नहीं है, ऊपर से बाप के प्रति द्वेषी बनता है, जो बड़ा होने पर बाप के कहे में नहीं रहता । जबकि समझदारी के साथ चेतकर, हठ छोड़कर यदि पिता लड़के की पसंद के किसी रोजगार में लगा दे तो उसे ऐसा पश्चात्ताप का मौका नहीं आएगा और लड़का पिता पर उलटे सद्भावपूर्ण बना रहेगा।
__व्यवहार में भी आखिर तक ताँता तानना छोड़ कर जो अवसर को पहचान लेता है वह लोकप्रिय बनता है, जब कि बहुत तानने वाले अप्रिय हो जाते हैं। अजी ! बातचीत में नहीं देखते ? किसी किसी को बाल की खाल खींचने, की आदत होती है। अपना कथन अपना 'मैं पना' ही घिसते रहते हैं। इतना ही नहीं, ऊपर से इसमें अपने मन से वाहवाही मानते हैं कि मैंने कैसे अच्छी तरह समझा दिया? गले उतार दिया?' लेकिन उसे पता नहीं कि समझाना-गले उतारना तो न जाने अगले ने स्वीकार किया कि नहीं? परन्तु तुम्हारे लिए 'जिद्दी ऐसी राय तो पैदा हो ही गयी । शायद अगला अब से यह निर्णय कर बैठा हो कि तुम्हारे साथ जबान लड़ाने में या बातचीत में पड़ना ही नहीं। इसमें तांता खींचने का क्या अच्छा फल मिला?
बहु-सास-ससुर की दौड़धूप :
मानभट की पत्नी ने भी आखिर तक जिद पकड़ रखी तो अब दिल में जबरदस्त घबराहट लिए पति के पीछे भागना पड़ा। ज्यों ही यह कहकर भागी त्यों ही सास को भी हुआ कि कौन जाने ऐसी क्या बात हुई होगी कि बेटा इस हद तक रोष में आकर निकल पड़ा? तब उसकी पत्नी भी पीछे भागी । ऐसी अँधेरी रात में क्या पता कहीं ये दोनों कुछ जीव को जोखिम कर बैठें तो? अतः वह भी मानभट के पिता से कहती है। -
'देखो जी ! यह लड़का गुस्से में बाहर चला गया है, तो बहु भी उसके पीछे दौड़ी है? कौन जानता है ये दोनों क्या कर लें ? अतः मैं भी जाती हूँ उनके पीछे। ऐसा कहते ही वह भी बहू के पीछे भागी।।
पिता वीरभट को भी हुआ कि 'अरे! आखिर ऐसा क्या है कि ऐसी रात के समय ये सब निकल पड़े? तब मैं भी कैसे बेठा रहूँ।' ऐसा सोचकर वह भी अपनी पत्नी के पीछे भागा।
आप बुद्धि और मूढ़ता के कारण विपरीत आयोजन :एक एक व्यक्ति आगे है; चारों गाँव के बाहर जाते हैं। एक एक के पीछे थोड़ी
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