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पत्नी का हृदय-परिवर्तन :
पत्नी देख रही है कि 'वह बाहर जा रहा है। लेकिन बोलती नहीं, जाने देती है। लेकिन बाद में धैर्य कैसे रहे ? क्योंकि रात का वक्त है। अतः इस समय किसी मित्र से मिलना नहीं होता, तब यह कहाँ जाएगा, इस बात की उसे चिंता लगी।
'अरे ! मैं कैसी वज्र से भी कठोर हृदयवाली कि पति पैमें पड़ा तो भी मैं नहीं मानी? मैंने प्रसन्नता नहीं दिखायी? तब यह बेचारा इतना इतना कर के भी मेरी प्रसन्नता न मिलने से विवश होकर न जाने कहाँ चला गया। जैसे पहले मुझे होने से मैं आत्महत्या करने यहाँ आ गयी थी वैसे अब वह हताश होकर कहीं आत्महत्या करने न गया हो ?'
मन में यह विचार आते ही जैसे बिजली चमकी, वह एकदम उठी, और सास के
पास आयी।
सास से कहने लगी 'ये आपके पुत्र क्रोध में भर कर कहीं निकल गये हैं। मैं जाती हूँ उनके पीछे । ऐसा कहते ही उसके पीछे चली।
मानभट ने जब यह विचार किया कि 'अब तो मैं जरा बाहर चला जाऊं और देखू कि मुझे चला जाता देख अब भी यह प्रसन्न होती है या नहीं।' और ऐसा सोचकर वह उठ कर वहाँ से चल दिया। उस समय यदि पत्नी ने समझदारी रखी होती तो अब जो अनर्थ होनेवाला है, वह न होता । लेकिन अभागों और अक्ल के बीच दूरी होती है। अभागों से अक्ल दूर रहती है। इसीलिये वहाँ स्त्री नहीं बोली लेकिन उसके जाने के बाद उसे पश्चात्ताप होता है और उसके पीछे लगती है।
जीवन में एक समझदारी :
भाग्य निर्बल हो तो सीधी बात सूझती नहीं, और वक्त पर नहीं सूझती । इससे प्रकट होता है कि जब बुद्धि किसी ऐसे हठाग्रह पर चिपकी रहे तब समझना कि 'भाग्य निर्बल है, तो उसे बहुत खिलने देना उचित नहीं, आग्रह छोड़ देना चाहिए, मति बदलनी चाहिए।' जीवन में यह एक समझदारी है। जिसे यह समझदारी आती है वह अनिष्ट से बच जाता है, जिसे नहीं आती वह बड़ी मुसीबत में पड़ जाता है। शायद यह मुसीबत ऐसी हो कि फिर कभी उसका निराकरण न हो, कभी उसका विषाद न मिटे।
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