SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुटुंबी का बुरा क्यों बोला जाता है ? प्र. लेकिन मन में अरुचि होत हुए भी यहाँ लोगों के बीच उसे छिपाने और शाबाशी पाने के लिए तो अच्छे विशेषण इस्तेमाल करने का दम्भ करें न? फिर हृदय में हो वैसा होंठ पर कहाँ आया? उ. परन्तु मानव हृदय की एक बात समझना जरुरी है कि हृदय में यदि किसीके प्रति विरोध की भावना हो तो उसकी हलचल और असूया असहिष्णुता उसे चैन नहीं लेने देती। वह 'बाहर बुरा दिखाई देगा तो?' - इसकी परवाह मिटा कर जिसके प्रति विरोध है, जिस पर अभाव-दुर्भाव है उसके विषय में बुरा बोलने को बाध्य करती है। इसीसे आज देखते है न कि घर के व्यक्तियों की बुरी बातें पडोसी या मित्र सगे-स्नेहियों के सामने कितनी भरपूर होती है ! बाप बेटे की और बेय बाप की निंदा करता है। भाई भाई की, सास बहू की, और बहू सास की निंदा करती है। यह चल ही रहा है न? इसलिए युवकों ने मौज की मौज और परीक्षा की परीक्षा इस तरह झूला झूलने और गीत गाने का कार्यक्रम बनाया है। इस तरह गाना शुरु हुआ। हर एक आदमी अपनी पत्नी के सामने ही गीत गाता है। उसमें कोई 'गोरी' कह कर तो कोई 'श्यामलागी' कह कर संबोधित करता है। कोई 'कोमल अंगवाली कोमलांगी' तो कोई दूसरा 'नील कमलाक्षी - नील कमल जैसे नेत्रोंवाली' कह कर संबोधित करता है। इस तरह क्रम में मानभट की बारी आई । वह झूले पर चढ कर गाता है - 'मधुर ध्वनि से कुपित हुए भौंरों की झंकार से मनोरम बनी हुई इस वसन्त ऋतु के समय कमल के समान नयनोवाली मुग्धा-श्यामा से मिलन हो तो कैसा? अर्थ का अनर्थ : ज्योंही उसने ऐसा गाया त्यों ही हर आदमी क्या बोलता है, यह सुनने के लिए ताक कर बैठी हई स्त्रियों ने यह सुनते ही मानभट की स्त्री की ओर देखकर हँस दिया और उसकी तर्जना-तिरस्कार करने लगी कि - _ 'अरी! अरी! ओ. ले देख! त तो गौर वर्ण की है, और तेरा पति 'श्यामा' कहता है, इससे लगता है कि इस के मन में कोई अन्य श्याम वर्णवाली प्रिय बन कर बैठी हुई, इसलिए तेरी कोई कद्र नहीं है, तू इसे प्रिय नहीं लगती, अत: तुझे भूल कर उसको मन में रख कर यह गाता है। अतः तुझे तो ऐसा देखना पडे इससे मरना बेहतर है।' स्त्रियों की इन वचनों से मानभट की पत्नी को बहुत बुरा लगा। उसके मन को हुआ. कि 'अरे! मेरे पति ने सखी-जनों के सामने मेरी शोभा नहीं रखी। ओह ! कैसी इनकी निर्दयता? कैसी कठोरता ? कैसी स्नेहहीनता ! कैसी निष्ठुरता ! यदि ऐसा ही है तो मुझे भी जीकर क्या करना है ? भाड़ में जाए ऐसा जीवन ! तो अब मैं आत्महत्या ही कर लूँ।' अर्थ के अनर्थ में से कुमत :कैसी गलतफहमी ! दरअसल मानभट को न तो पत्नी से मनमुटाव है न उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy