________________
बाप मार्ग निकालता है :
यहाँ मानभट की गंभीर भूल के बावजूद उसके पिता के उलाहने की बात उससे कहने का अवसर नहीं है; क्योंकि अपनी जान को भी खतरा है 'मानभट ने भील राजकुमार का खून किया है, उसके प्रतिशोध-रुप में उसके आदमी मुझसे वैर लें तो ?' यह सोच कर वह मानभट से कहता है, 'बेटा! अब तो हम सबको यहाँ से शीघ्र भाग निकलना चाहिए, और किसी अनजाने निर्जन प्रदेश मे जाकर रहना चाहिए। इसलिए जल्दी से गाड़ी तैयार करके उसमें सारभूत सामान ले लें जिससे हम तुरन्त रवाना हो जाएँ ।
एक भव के लिए; तो भवोभव का क्या ? :
बस पिता के वचन पर गाड़ी तैयार कर मानभट और परिवार के लोग परदेश रवाना हुए।
एक भव के प्राण बचाने के लिए मनुष्य घर भी छोडता है। किंतु भवोभव की रक्षा के लिए घर नहीं छोडना है ! मिथ्यात्व की गिरफ्त ऐसी होती है।
तब; जिन्हें भावी जन्म-मरण के चक्कर का डर लगा है, ऐसे पूरे के पूरे भाग्यशाली परिवार आज भी संसार - त्याग करते देखने को मिलते हैं। बाकी तो जीवों की यह अज्ञानदशा है, नादानी है कि इस जन्म के मान- - मर्तबे से लेकर प्राणों तक की रक्षा हेतु सब कुछ कर लेंगे परन्तु जन्म-जन्म के बचाव के लिए कुछ भी छोड़ने को तत्त्पर नहीं हैं सांसारिक घटना से तुलना कीजिये
1
आज भी सुनने में आता है कि कर्ज बढ़ जाने के कारण तथा समाज या सरकार का भय आ पड़ने से मनुष्य अकेला ही सारे परिवार को छोड़ कर भाग गया, तो बरसों बीत जाने के बाद भी पुनरागमन हुआ ही नहीं। परिवार ने सारा जीवन उसके बिना बिताया और फिर भी छुटकारे की साँस ली कि, 'चलो, अच्छा हुआ, वे यहाँ की आफत से तो बच गये ।'
तो क्या परलोक का खयाल कर यह विचार नहीं आना चाहिए कि 'भले ही हमें छोड़कर चारित्र - जीवन स्वीकार करें और हमें उनके बिना कष्टमय जीवन बीताना पड़े, फिर भी वे तो दुर्गति की आफत से बच जाएँगे ।' नहीं, यह विचार ही नहीं है, क्योंकि परलोक द्रष्टि समक्ष नहीं है, गृहवास तथा आरंभ विषय परिग्रह की अंधी लंपटता के फलस्वरुप संसार की दुर्गतियों में परिभ्रमण होता है, यह दिखाई नहीं देता, अतः उसका डर नहीं है । तब क्यों अपने या अगले के उससे बचने का मार्ग खोजे ? किसलिए बचने की कामना करें ? हाँ, प्रियजन पर यहाँ कोई विषम आक्रमण होता है तो उससे रक्षा करने में स्वयं अपना कितना ही स्वार्थ छोड़ देगा । किन्तु परलोक हित और धर्म के लिए कोई बात ही नहीं । मिथ्यात्व झलकता हो वहाँ ऐसा ही होता है ।
मानभट और उसका समस्त परिवार प्राण बचाने के हेतु परदेश रवाना हुआ। वह भी
२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org