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________________ भील - राजकुमार के साथी भील एवं राजसभा में उपस्थित अन्य भी अब तो यमदूत जैसे बन जाएँ । वे इसे जिन्दा छोड़े ? यह अकेला और वे बहुत से । अतः उन सबके आगे इसकी क्या चले? बस, शीघ्र ही यह वस्तुस्थिति भाँपकर मानभट वहाँ जराभी रुके बिना राजसभा से बाहर निकल जाता है। मान कषाय ने कैसा अंध बनाया? परिणाम सोचने ही नहीं दिया। यहाँ भी भील को छुरी लगते ही साथ के लोग चौंक उठे। किसीको कल्पना ही नहीं थी कि 'मानभट ने रोष प्रकट किया पर भील कुमारने तुरन्त क्षमा माँग ली, इसके बाद भी ऐसा भयानक खून हो सकता है।' उस मजाक करने वाले को भी ऐसी कल्पना नहीं थी। छुरी लगने से भील राजकुमार के नीचे गिरते ही होहल्ला मच गया। सब वहाँ इकट्ठे हो गये। और मानभट को लक्ष कर कहने लगे, 'पकडो, पकडो, इस बदमाश को।' लोग उसे पकड़ने दौड़े। पकड़ा जाए तो क्या हाल हो इसका? फिर वे इसे जिन्दा छोड़े? मृत्यु क्यों आई? कर्म की कैसी विचित्रता है ? बेचारे भील कुमार को यहाँ आते समय क्या जराभी यह कल्पना थी कि 'राजा को नमस्कार के बहाने मौत मुझे बुला रही है ?' नहीं, फिर भी मौत कैसे आई ? देखना - (१) इसकी जरासी गफलत मृत्यु का कारण नहीं है ! ऐसी गफलत तो दुनिया में बहतों को हआ करती है। उससे कोई मौत थोड़े ही आ जाती है? तब (२) काल-समय भी कारण नहीं है, क्योंकि औरों के लिए भी वही का वही समय वहाँ प्रवर्तमान था, फिर भी उनकी मौत नहीं हुई तो (३) अकेली भवितव्यता भी कारणभूत नहीं, क्योंकि ऐसा हो तब तो फिर जीव के सत्कृत्य-दुष्कृत्य व्यर्थ ही जाएँ । अतः यही कहना होगा कि (४) यहाँ भील के पूर्वकृत कर्म उदय में आये, और उन्होंने उस (मानभट) की बुद्धि को बिगाड कर यह जानलेवा प्रहार करवाया। यहाँ प्रश्न होता है। - प्र. क्या किसी के कर्म दूसरे की बुद्धि बिगाड़ते हैं ? उ. हाँ, देखिये ! सीताजी को अपयश नाम कर्म आदि कर्मों का जब उदय हुआ तब उन कर्मो ने सौत-रानियों आदि की बुद्धि बिगाडी न? राम की भी मति फिरा दी न? महावीर प्रभु को कान में कीलें ठोंकने का कर्म उदय में आया तब ग्वाले की बुद्धि बिगाडी नहीं ? सौत-रानियों ने महाजन को सीखा कर राम के पास भेजा, और महाजन ने रामचंद्रजी से कहा कि "लोग बातें करते हैं कि पराये घर रह कर आयी हुई सीताजी को रखना आप जैसे महानुभाव के लिए उचित नहीं।" फिर भी राम सीताजी को लेश मात्र भी असती मानने को तैयार नहीं। तब फिर ऐसी बद्धि क्यों आयी कि - 'तो भी सीताजी का त्याग कर श्रेष्ठ राजा के रुप में अपनी कीर्ति अखंड बनाये रखू ।' सीताजी को निकाल ही देना था तो उनके पिता राजा जनक के यहाँ उन्हें भेज देते । दूर जंगल में क्यों रखवा दिया? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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