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________________ रहा है, तो फिर गिनती करनी चाहिये कि आज मैं कितनी बार परस्त्री के दर्शन से बचा? सामने आयी हुई स्त्री आराम से देखी जा सकती है, परन्तु गिनती की बात आते ही उसके सामने नजर करने का मन ही नहीं होता । अरे! दूसरी बार बच गया... अब तीसरी बार बच गया। शाम होने पर मन को संतोष होता है कि इतनी बार परस्त्रीदर्शन से बचा। इस प्रकार रोज बल बढाते जाने से हवस मंदं पड़ जाती है। परस्त्री के संग से बचने के लिये नरक की भट्टी में जलने की भयंकर वेदना नजर के सामने लानी चाहिये । और यहाँ पर भी उसके पीछे रही हुई भयानक विह्वलता का भी भय लगना चाहिये । बाकी तो, परस्त्री के संग के प्रलोभन में एक बार भी नहीं फँसना चाहिये । नहीं तो, जिंदगी भर यह हवस लगी ही रहेगी। तोशल को मोहदत्त की चुनौती : तलवार देखकर बेचारी वनदत्ता भय के मारे चीख उठी । 'कोई आओ, मुझे बचाओ ।' सुवर्णदेवा भी शोर मचाने लगी । यहाँ कौन था बचानेवाला ! परन्तु इतने में मोहदत्त उद्यान में आ पहुँचा। चीख सुनकर वह दूर से दौडता हुआ आया। उसे तोशल पर बहुत गुस्सा आया । एक तो वनदत्ता को वह चाहता है और दूसरी बात यह कि तोशल ने एक स्त्री पर तलवार उठायी थी। इन दो बातों ने उसे उद्विग्न बनाया। उसने भी तलवार उठायी व तोशल को ललकारते हुए कहा___'अरे नराधम ! निर्लज्ज ! स्त्री जात पर प्रहार करने के लिये तैयार हुआ है ? मेरे सामने तो आ ! मैं तेरा बल तो देखें जरा !' तोशल भी उसकी ओर मुडा । तलवार तो उठायी हुई थी ही, उसने मोहदत्त को चुनौती देते हुए कहा 'अरे दीन पुरुष! तू तो शायद राह भूल गया लगता है। लगता है, तुझे यमराज ने भेजा है। यह ले' ऐसा कहते हुए उसने उस पर तलवार से वार किया। दोनों में से एक को भी भान है ? पिता व पुत्र हैं न? दोनों वापिस पुत्री व बहन पर मोहान्ध बने हैं, परन्तु आपसी संबन्ध मालुम न होने से एक-दूसरे के सामने तलवार उठा रहे हैं। अज्ञान व मोह कितने भयंकर हैं, यह समझ में आता है न? फिर भी अभी तक अज्ञान व मोह को निकालना नहीं है ? निकालने की इच्छा भी नहीं है ? देखिये, बात कहाँ तक पहुँचती है? तोशल मरता है : तोशल ने मोहदत्त के सर पर तलवार से प्रहार तो किया, परन्तु मोहदत्त यह समझकर ही खडा है कि वार होने ही वाला है। इसीलिये जैसे ही तोशल की तलवार उस पर उठी वह एक ओर खिसक गया व तुरन्त ही उसने तोशल के कंधे पर तलवार से प्रहार किया । तोशल की तलवार निशाना चुककर नीचे उतरी, इतने में मोहदत्त वार करता है। तोशल को इसकी सावधानी न रही, इससे कंधे से बहुत चोट लगी तथा वह जमीन पर गिर पड़ा। उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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