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________________ उसे यहाँ से निकालने पर और कहीं जाकर भी अपनी कुशीलता से अनर्थ मचायेगा, इसीलिये इसे तो जिंदा रखना ही नहीं चाहिये । अनाचार के भयंकर गुनाह की सजा भी भयंकर ही करनी चाहिये, चाहे वह स्वयं का पुत्र भी क्यों न हो ! इससे प्रजा भी अनाचार करने से डरेगी। कहीं पर अनाचार चल ही नहीं पायेगा।' इसी आशय से राजा ने वध की सजा का आदेश दिया। अब मंत्री क्या बोले? इस आज्ञा का पालन होने पर तोशल को क्या मिलेगा? मन में पैदा की हुई वासना की तृप्ति की अयोग्य वृत्ति का क्या अंजाम आया ? मंत्री उसे नगर के बाहर ले गया। तोशल का हृदय तो भय के मारे जोरों से धड़क रहा है... हाय ! अब तलवार के एक झटके से गर्दन उड़ी ही समझो !' अब अत्यन्त पछतावा होने लगा, 'हाय ! यह मैंने क्या किया? मैं अनाचार के मार्ग पर दौड़ा ही क्यों? क्षणिक सुख के लोभ में मैं क्यों अंध बना?' इस तरह पछतावा करने से भी क्या फायदा? फिर भी पुण्य थोड़ा प्रबल है। देखिये मौत से कैसे वह बचता है? मंत्री तोशल को बचा लेता है : मंत्री तोशल को वध हेतु श्मशान में ले तो गया, परन्तु वैसे उसे तोशल के प्रति आदर था, इसलिये विचार आता है कि 'यह तोशल योग्य राजकुमार है, परन्तु जवानी के उन्माद में बेचारा भटक गया व अकार्य में चढ़ गया। ऐसे अच्छे युवक की जिंदगी क्यों नष्ट की जाय ?' इसलिये वह तोशल से कहता है - 'कुमार ! पिताजीने तो तुझे शीघ्र मार डालने का मुझे आदेश दिया है। परन्तु तू मेरा स्वामी है, आशास्पद नौजवान है । तुझे मैं किस प्रकार मरवा डालुं ? ऐसा करने में मेरा दिल नहीं चलता। तू जीवित रहेगा, तो फिर कभी अच्छे सकतों से इस पाप को धोकर जीवन को उज्ज्वल बना सकेगा। मर जायेगा, तो सुकृत करने का अवसर खो बैठेगा।' अतः मैं तुझे छोड़ देता हूं। तू यहाँ से परदेश चला जा और ऐसे देश में जाना कि कोई तुझे खोज ही न पाये और यह बात किसीसे कभी मत करना । उड़ते-उड़ते भी यह खबर यदि राजा तक पहुंच गयी, तो मुझे मौत के घाट उतरवा देगा। जा, सुकृतों से अपने जीवन को उज्ज्वल बनाना।' मंत्री कैसा गंभीर, दीर्घदर्शी व युवक की जिंदगी की कीमत आंकनेवाला मैत्रीभावयुक्त दिलवाला था! राजकुमार तोशल ने मंत्री का खूब आभार माना व वहाँ से गुपचुप निकल गया । सीधा पहुंचा पाटलिपुत्र ! राजकुमार को तो जैसे नवजीवन मिला ! वह भी कितनी बड़ी ठोकर खाकर! स्वयं राजा बनने का हकदार था। राज्य तो गया ही, परन्तु राज्य के खजाने की एक फूटी कौड़ी भी न मिली। राज्य के सिपाहियों-या नोकरों में से उसे एक सिपाही या नौकर न मिला । खाली हाथ घर से निकलना पड़ा । किस कारण से ? सिर्फ एक परस्त्री में आसक्त बनकर शील की मर्यादा का उल्लंघन किया, इसीलिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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