________________
करने का विचार करके 'जाते-जाते एक बार तो यह दुनिया देख लुं' इस इरादे से गवाक्ष पर चढ़ी, वहीं आपको देखा । देखने के बाद तो मन में न रही कोई शंका, न कोई भय या न ही लाज ! मैं तो एकदम मूढ़ बन गयी, मैं सुधबुध खो बैठी। आपको जब अपनी छाती को हाथ से छूकर अंगुली ऊंची करते देखा, तो मैं आपका इशारा समझ गयी कि यदि तुझे यह हृदय ठीक लगता हो, तो एक बार तेरा संगम होने दे। तब मैंने भी तलवार की म्यान की
ओर निर्देश करके संकेत किया कि यदि तलवार का सहारा लो, तो मुझे आप पा सकोगे, इसके सिवाय नहीं । आप तो चले गये । वक्त गुजरने लगा, आप मुझे न दिखे, मुझे मेरी आशा टूटती हुई नजर आयी। अच्छा हुआ, इतने में तो आप आ पहुंचे। यह घर तो ऊंचे कुलवाले का है, इसमें आपको अपमान की चिन्ता न हो व लोकापवाद की परवाह न हो, तो मेरी तैयारी है। मुझे तो अब आपकी ही शरण है।
एकान्त में युवक-युवती का मिलन खतरनाक है। राजकुमार तोशल व सुवर्णदेवी, दोनों कुलीन खानदान के हैं, शील के प्रेमी हैं, परन्तु सिर्फ द्रष्टि से भी दोनों का एक बार मिलन हुआ, तो अनर्थ का रास्ता खुल गया। अब एकान्त में मिलन हो और स्त्री कुमार के आगे दीनता दिखाये, फिर कैसा भयंकर अनर्थ होगा? दोनों अनाचार के मार्ग पर चढ़ गये। बाद में राजकुमार चला गया। परन्तु एक बार अनाचार का चस्का लगा, तो चलने लगे रोज के पाप!
अनाचार में गर्भ :
सुवर्णदेवी से भूल हुई। उसे गर्भ रह गया। गर्भ का विकास होने पर गुप्त थोड़े ही रह सकता है ? उसके पिता नंदसेठ को पता चलने पर चौंक उठा । मन में लगा - 'अरे! इसने तो कुल को कलंक लगाया ! ऐसे सुरक्षित घर में कौन आता होगा?' सेठने राजा से बात की - 'महाराज ! मेरी पुत्री का पति तो परदेश गया है। बारह वर्ष हुए, अभी तक लौटा नहीं । परन्तु मेरी पुत्री को गर्भ रह गया है। जरुर किसी पुरुष के साथ इसके नाजायज संबन्ध हैं। आप जांच-पड़ताल करवा दीजिये, तो पता चले।'
(तोशल पकडा गया :
राजा ने तुरन्त मंत्री को बुलाकर छान-बीन करने की आज्ञा दी। मंत्री ने रात-दिन के गुप्त पुलिसों को नियुक्त किया। एक बार रात में सुवर्णदेवी के पास आता हुआ तोशल पकड़ा गया। मंत्रीने राजा से बात की। शील के पक्के हिमायती राजा के गुस्से का पार न रहा । तुरन्त ही मंत्री से कह दिया - 'तोशल का वध करवा दो।'
राजा की न्याय-प्रियता तो देखिये ! तोशल स्वयं का पुत्र है। आज तक उस पर खूब प्रेम रखा है व भविष्य में उसे राजगद्दी देनी है; फिर भी राजा यह सब भूला बैठा। मन में हुआ कि 'ऐसा शीलहीन पुत्र कुल का नाम कैसे रोशन करेगा? ऐसा कुशील पुत्र तो मेरे नाम को बट्टा लगायेगा । एक दुःशीलता अन्य सारी योग्यताओं को धूल में मिला देती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org