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भी मौत होती है।
शीलपूर्वक धर्म व धर्म का फल शील :___ इसीलिये कोई भी धर्मसाधना शील के पालन के साथ करनी चाहिये । यह करके भी क्या इच्छा रखनी चाहिये ? शील का विकास ! 'शीलपूर्वक धर्म व धर्म का फल भी शील' । अर्थात् ज्यादा शीलविकास यानी विशेष विषयविरति के लिये धर्म साधा जाता है। इससे जो पुण्य उपार्जित होकर आगे भोग-सामग्री देता है, उसमें संक्लेश-आसक्ति नहीं होगी। कुछ लोग कहते हैं -
धर्म नरकदायी भोगसामग्री क्यों देता है ?
प्र. - धर्म ऐसी भोगसामग्री क्यों देता है कि जिससे बेचारा जीव उसका उपभोग करके दुर्गति में जाता है ? ___उ. - यहाँ समझने की बात यह है कि धर्म-साधना संपूर्ण रुप से नहीं की, इसलिये मोक्ष न दे सका । तो क्या देगा? दरिद्रता या समृद्धि ? समृद्धि ही देता है। लेकिन शीलविकास के लिये यदि धर्म किया होता, तो ऐसे धर्म से जो समृद्धि मिलती है, उसमें भी शीलविकास होता है, संक्लेश-आसक्ति-लुब्धता नहीं होती। इससे समृद्धि का त्याग व उच्च शील तथा उच्च धर्म मिलता है। इस प्रकार करते हुए आगे बढ़ते-बढ़ते उत्कृष्ट संपूर्ण धर्म तक पहुंचा जाता है, इससे वीतराग, सर्वज्ञ बनकर मोक्ष पाया जा सकता है। कहने का तात्पर्य यही है कि धर्म के फल में भी शील के विकास की ही इच्छा रखी।
अब तोशलकुमार से कन्या क्या कहती है, यह देखें। शीलप्रेमी कन्या राजकुमार के प्रति क्यों आकर्षित हुई ?
"शील के बिना जीने से क्या फायदा? इसी प्रकार तुम्हारे बिना जीने से भी क्या फायदा? इस प्रकार विचार करते हुए मेरा दिल बेचैन है।'
देखिये, शील का इतना महत्त्व समझने पर भी कन्या राजकुमार के प्रति आकर्षित हुई है। शील-विहीन जीवन की कोई कीमत नहीं । शील तोड़ने से तो बेहतर है जीवन समाप्त कर देना ! ऐसा मानने पर भी जिस राजकुमार के संबन्ध से शीलभंग होने की संभावना है, उसका तो त्याग करना ही चाहिये । साथ ही साथ वह यह भी कहती है कि 'तुम्हारे बिना जीने से भी क्या फायदा? अर्थात् तुम न मिलो, तो मरण ही शरण है।' इस प्रकार मन शील व राजकुमार दोनों के बीच झोले खा रहा है। 'शील की रक्षा करुं या राजकुमार को पाऊँ ?'
शील का इतना महत्त्व समझने पर भी ऐसा क्यों? आप कहेंगे, 'मोह का उदय होने से सही समझने पर भी गलत राह अपनाने का मन होता है', परन्तु मोह का उदय क्यों हुआ ? यह तो बताईये ! राजकुमार पर नजर ही न डाली होती, कुलीनता की मर्यादा के पालन के लिये मन को कडक रखा होता, 'परपुरुष के दर्शन बुरा निमित्त है', ऐसा
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