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________________ हुआ कि घूमते-घूमते तोशल की नजर एक सेठ की सफेद हवेली पर पड़ी । उस हवेली के झरोखे में एक चांद जैसी मनोहर मुखवाली कन्या नजर आयी । एक तो जवानी, उसमें वासनायें उछल-कुद कर रही हों, वहां अचानक ऐसा अनिच्छनीय दर्शन हो जाय तो समझदार इन्सान को क्या करना चाहिये ? सामने से जोरदार हवा के झोंके से धूल उड़ने लगे व. उससे आंखें एकदम बन्द हो जाती हैं और मुंह फिर जाता है, उसी प्रकार नजर फिरा देनी चाहिये । परन्तु तोशल यहाँ भूला । उस कन्या पर द्रष्टि पड़ते ही मुंह फेरने के बजाय द्रष्टि वहीं स्थिर रखी । कन्या का ध्यान भी राजकुमार के मुख पर गया। परस्पर नजर से नजर मिली व राग पैदा हुआ। बाला से आकर्षित तोशल वहाँ खड़ा रह गया और कामराग से विह्वल बन गया। यदि कन्या ने द्रष्टि का संयम रखा होता व मुंह फिरा दिया होता, तो शायद तोशल आगे नहीं बढ़ता, परन्तु कन्या भी राग में फँसी थी । वह स्वयं बचे कैसे व तोशल को बचाये कैसे ? निमित्त मारता है, निमित्त तारता है। बुरे निमित्त मिलने पर अच्छे इन्सानों का भी पतन होता है । व संतसमागम, वाणी-श्रवणादि अच्छे निमित्त मिलने पर बुरे जीव भी अच्छे बनते हैं। " तोशल व कन्या के संकेत : तोशल को पता चल गया कि यह कन्या भी मुझ पर आकर्षित हुई लगती है, मौका बराबर है। परन्तु इसके साथ मिलन कैसे हो? हाँ, कुछ इशारा करूं और इशारे से जवाब मिले, तो रास्ता निकले । ऐसा सोचकर उसने दायें हाथ से छाती मसली व बायें हाथ की पहली अंगुली ऊँची की। कन्या ने इसके जवाब में अपने दायें हाथ से कुमार की तलवार की म्यान की ओर इशारा किया। अनंत काल से अर्थ-काम में कुशल जीव को ये कलायें सिखानी नहीं पड़ती। सिखाने योग्य तो धर्मकला है। बिना सीखे भी छोटे बच्चों को पैसे चुराने की कला आ जाती है और जवान को काम-विलास की कला भी आ जाती है। नहीं आती है, तो एक धर्मकला। क्या आज के मां-बाप श्रावक-श्राविका हैं ? धर्मकला सिखाते हैं ? आजकल के माता-पिताओं को अर्थकला सिखानी आती है। बच्चों को कहते हैं - 'पढ़ो, पढ़ो ! नहीं पढ़ोगे, तो कमाओगे कैसे? खाओगे कैसे ? पढ़ोगे तो चार पैसे कमाना सिखोगे, भूखे नहीं मरोगे।' इसी प्रकार मातायें पुत्रियों को पाक-कला सिखाती हैं और आगे बढ़कर 'डिग्री न हो, तो लड़की को कौन ले जायेगा?' इस भय से लड़कियों को स्कूल-कॉलेज में पढ़ाते हैं, परन्तु धर्मकला सिखाने की तो बात ही कहाँ है ? कॉलेज पढ़े हुए युवक-युवतियों को सामायिक-चैत्यवन्दन की एक छोटी-सी क्रिया भी नहीं आती। कहाँ से आये बेचारों को? माता-पिता धर्मकला सिखाने को प्रधानता दे, तो न? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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