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________________ o मोहदत्त का द्रष्टान्त इस भरतक्षेत्र में कोशलपुरी नगरी है, जो प्राचीन काल में कोशला कहलाती थी। उस नगरी में कोशल नामक राजा था। उसका अनुशासन कडक था । अपराधियों को ऐसी उग्र सजा देता कि देखकर दूसरे भी कांप उठते । इसीलिये कोई अपराध करने की किसीकी हिम्मत नहीं चलती थी। इसमें भी खास करके परस्त्रीगामी के प्रति तो राजा इतना कठोर था कि उसे कड़ी से कड़ी सजा देता ! किसीकी मजाल नहीं थी कि व्यभिचार के मार्ग पर चल सके । नयी प्रजा का पतन क्यों ? अनादि की वासना व विकारों के गुलाम बने हुए जीव की दशा ही ऐसी होती है कि उसे यदि उग्र अनुशासन का भय न हो, तो वासना - विकारों के उन्माद करने में वह दूसरा कोई विचार नहीं करता और न ही पीछे मुड़कर देखता है। इसीलिये तो आज यह प्रत्यक्ष नजर आ रहा है कि आज से कुछ वर्षों पूर्व पुत्र पर मां-बाप व शिक्षक ऐसा कठोर अनुशासन करते थे, जिससे नयी प्रजा अपराध नहीं कर पाती थी । आज समाज की व्यवस्था इतनी बिगड़ गयी है कि माँ-बाप तथा शिक्षकों का ऐसा कडक अनुशासन नहीं रहा, जिससे नयी प्रजा में अपराधों का प्रमाण बढ़ गया है। आज के युवकों में अनुशासनहीनता, उच्छृंखलता, आलसीपन, व्यभिचार, विलासिता, झूठ, अनीति आदि कितना फैला हुआ दिखता है ? 'बच्चों को डांटो मत, उसकी कोमल भावनाओं को कुचलो मत, समझाबुझाकर उनसे काम लो ।' आदि नये जमाने के नाद शुरु हो गये हैं, परन्तु अनादिकाल से गुनाह - प्रिय जीव-दोषप्रिय जीव, यदि छूट मिले और दोष का सेवन करने में कुछ भय न हो, तो दोष - सेवन करने में कुछ बाकी नहीं रखता, चाहे उसे लाख क्यों न समझाया जाय । नादानी के कारण भावी महान अनर्थों का विचार करने जैसी स्थिति नहीं है और वर्तमान में कोई कडक शिक्षा या सजा नहीं है, फिर शराबी को लगे शराब के व्यसन की तरह जीवों को जिनकी लत पड़ गयी है, वे दोष के व्यसन कैसे छूटें ? उनसे वह पीछे कैसे हटे ? इसीसे आज नयी प्रजा महापतन के मार्ग पर जा रही है । राजा कोशल यह समझता है, इसीलिये उसने कठोर अनुशासन से प्रजा को अंकुश में रखा है, जिससे गुनाह करने से सब डरते हैं । राजपुत्र तोशल गलत राह पर : राजा के तोशल नामक पुत्रने युवावस्था में कदम रखा है। वह नगर में मनचाहे ढंग से घूमता है। भविष्य में उसे राजा बनाना है, इसलिये कोशल राजा यही समझते कि घूमने-फिरने से अनुभव मिलेगा, नया-नया जानने व सीखने मिलेगा। एक बार ऐसा 888888 www.jainelibrary.org Jain Education International १७४ For Private & Personal Use Only
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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