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लोभदेव को लगता है कि 'सचमुच ! दुनिया में धर्म जैसी चीज भी है और पाप जैसी चीज भी है। इसीसे सुख-दुख मिलते है। अरे! मैंने तो कितने पाप किए हैं ! बेचारे भद्रसेठ को मैंने निर्दयता से समुद्र में धकेला और वहां उसे मगरमच्छ के मुंह में चबाया जाता हुआ देखकर मैं खुश हुआ। मेरे इस पाप के कारण निर्दोष परिवार को भी मौत मिली । धिक्कार है मुझ जैसे पापी को ! अब मैं जीकर भी क्या करूं ? किसी तीर्थस्थान में जाकर आत्महत्या करूंगा ।'
इस निर्जन स्थल में अकेला लोभदेव धर्म व पाप के अस्तित्व के बारे में सोच रहा है । बहुत कुछ देखकर आया है, इसलिये गहराई से सोचता है । अपने पापों के प्रति उसे तिरस्कार होता है, परन्तु अज्ञान के कारण यही मानता है कि तीर्थस्थान में जाकर आत्महत्या करने से पापों का बोझ उतर जाता है। अब किस तीर्थस्थान में जाया जाय ?
(पिशाचों का आगमन :
थका हुआ होने से विशाल बरगद के वृक्ष के नीचे वह सो गया। बरगद के उपर पिशाच इकठ्ठे होकर बातें कर रहे थे । आवाज से लोभदेव जाग पड़ा। वह सोचने लगा कि किस भाषा में बातें चल रही हैं ? संस्कृत भाषा तो नहीं लगती, क्योंकि संस्कृत भाषा तो अनेक प्रकार के विभक्ति - लिंग प्रत्यय आदि से समझनी कठिन है, जब कि यह भाषा तो समझ में आ जाय, ऐसी है ! क्या यह प्राकृत भाषा होगी ? नहीं, नहीं, प्राकृत भाषा तो अमृत के प्रवाह जैसी मधुर भाषा है, यह भाषा तो ऐसी नहीं लगती। तो अपभ्रंश भाषा है ? नहीं ! क्योंकि यह तो संस्कृत - प्राकृत दोनों का मिश्रण लगता है, परन्तु इसमें तो शुद्धअशुद्ध पद हैं, मनोहर है ! बस, यह तो पैशाची भाषा लगती है। यहाँ पिशाच आये लगते हैं। सुनुं तो सही, वे क्या बातें कर रहे हैं ? जागता हुआ पड़े पड़े बातें सुन रहा है ।
पिशाच परस्पर बातें कर रहे हैं । एक पिशाच पूछता है - 'बोलो, कौन-सा प्रदेश रमणीय है? तब एक ने जवाब दिया, 'जहाँ आम्र वृक्ष में नयी मंजरी आयी हो और अच्छी हवा बहती हो, वह ।'
इतने में दूसरा बोला, 'नहीं, नहीं ! सुन्दर तो वह मेरुपर्वत है, जहाँ देवांगनायें घूमती
हैं ।'
तीसरा कहने लगा, 'अरे ! वह भी नहीं ! जहाँ मनोहर देवियां झूले में झुलती हुई गाती हो, वह मधुर स्वर से गूंजता हुआ नन्दन वन का प्रदेश मनोहर है ।
चौथा कहता है, 'अरे! रमणीय-अरमणीय का फर्क ही तुम नहीं जानते। रमणीय तो हिमवंत पर्वत है।'
वहीं पर एक बोला- 'रहने दो, रहने दो! समस्त रमणीय प्रदेशों में सर्वश्रेष्ठ तो गंगा नदी कहलाती है, जहाँ पर मित्र- वध से लगे हुए पाप भी धुल जाते हैं।'
इस प्रकार बातें करके पिशाच तो वहाँ से चले गये ।
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