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________________ से आयेगी? 'अरे भाई! यदि तुझे मरकर सर्प बनने का अवसर आया, तो तेरी क्या दशा होगी?' इसका तो कोई विचार ही नहीं, तो फिर सामनेवाले जीव के दुःख या उसकी दया का तो विचार ही कहाँ से होगा? आज की खोजों में क्या चल रहा है ? लोभदेव ऐसे दुष्टों के हाथ में फँसा है, जो उसका मांस व खून निकालते हैं। मनुष्य के मांस व खून से समुद्री सांप को पुष्ट करके उस सांप के द्वारा सोना बनाने का धंधा वे दुष्ट लोग करते हैं। कोई भूला-भटका इन्सान हाथ में आये, इसी ताक में वे लगे रहते हैं। वह हाथ में आते ही जुल्म शुरु हो जाते हैं। लोभदेव भी इन्हीं दुष्टों के चंगुल में फँसा है। वह एक बार में न मर जाय, इतनी सावधानी रखते हुए वे लोग उसके शरीर से मांस के टुकड़े काटते हैं व खून इकठ्ठा करते हैं। उसके शरीर में जलन का पार नहीं ! बाद में वे लोग उसके घावों पर मरहमपट्टी करते हैं व दवाई देते हैं। उसे अच्छा-अच्छा खिलाते हैं। छ महीनों में तो लोभदेव पुनः स्वस्थ हो जाता है। अब तो छुटकारा मिलेगा न? (जीते जी कितनी बार मांस काटा जाता है? कहाँ से मिले छुटकारा ? फिर से वही मांस निकालने का सिलसिला शुरु हो जाता है । वे दुष्ट फिर से लोभदेव को जकड़कर बांधकर उसके शरीर में से मांस निकालते हैं व खून इकठ्ठा करते हैं । फिर से छ महीने इसी तरह दवा-दारु, अच्छे खानपान से चंगा करते हैं और फिर से मांस व खुन निकालने का क्रम जारी रखते हैं। इस प्रकार करते हुए बारह वर्ष बीत गये । शरीर तो हाड-पिंजर जैसा हो गया था, लेकिन छुटकारा कहाँ मिलनेवाला था ? उस प्रदेश में दुःख से छुड़ानेवाला कोई नहीं और लोगों को बिल्कुल दया नहीं। छूटे कहाँ से? . वक्त की आवाज सुननी चाहिये । आज हमें कौन-सा समय मिला है ? आज भी पशुओं की क्रूर कत्ल चल रही है। यह हमें सूचित करता है कि ऐसे काल में भी हमें ऐसी कोई भयंकर पीड़ा नहीं और ऐसा भव्य धर्मशासन मिला है, तो इसकी आराधना के सिवाय और क्या अच्छा लगे? आत्मा पर शासन का रंग चढ़ाने व आराधना में मग्न रहने के लिये सचमुच आज का वक्त प्रेरक है, यदि इसे इस तरीके से पहचाना जाय तो। वैसे तो अज्ञानी को यह समय रोने का लगता है। परन्तु रोना किसे होता है ? जिनशासन न पाये हुओं को ! हमें नहीं ! शासन तो कहता है कि 'समय के सूचन को परखो ! यदि अच्छे वक्त मैं आराधना न की, तो फिर बुरे वक्त में तू क्या कर पायेगा? . . बेचारा लोभदेव १२ वर्ष तक हर ६ महीने में एक बार छेदन की भयंकरे पीड़ा भुगतते हुए क्या आराधना कर पायेगा? मरना चाहता है, पर मौत नहीं आती। लोभदेव यही सोचता है कि 'इतनी पीड़ा सहने से तो मरना भला ! इस दुःख से तो छुटकारा मिले!' दुख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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